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अत्यधिक स्नेह करके भी अवतारी समझती हैं । उनका श्याम सलोना रूप है तथा "मधु से मीठी बोली है । कुटिल अल्कों वाले की आकृति भोली है, "मग से नेत्र और “अनी सी तीक्ष्ण दष्टि है ।।
द्वापर के कृष्ण राधा-वल्लभ तथा गोपी-वल्लभ हैं । मथुरा जाने पर जब कृष्ण कुब्जा पर कृपा करते हैं तो वह राधा को ब्रजेश्वरी कहकर पुकारती है । कृष्ण राधा के प्रिय तथा प्रेमी दोनों ही हैं । गोपियों के द्वारा वर्णित मान-प्रसंग में कृष्ण के प्रेमी. रूप की व्यंजना हुई है । इसमें वे अत्यन्त आसक्त एवं अधीन नायक के रूप में दिखाए गए हैं । यह रूप परंपरित है । राधा एक समर्पित भक्त के रूप में चित्रित हुई है । राधा कृष्णमयी हो जाती है और भावावेश की अवस्था में कृष्ण रूप हो जाती है । उद्धव एक मूर्ति के अर्धाग में राधा का तथा आधे में कृष्ण का दर्शन करते हैं । यह रूप परंपरित होते हुए भी नवीन रूप में चित्रित हुआ है। "जयभारत :
जयदथ-वध" की तरह इस काव्य की रचना भी मैथिलीशरण गुप्त ने महाभारत के आधार पर की है । पाण्डवों के साथ कृष्ण की कथा भी *जयभारत में यथास्थान कही गई है । द्रौपदी-चीरहरण तथा कृष्ण दूतत्व प्रसंगों में से अलौकिकता का निवारण करके मनोवैज्ञानिकता की प्रतिष्ठा की गई है । जयभारत के पात्र अधिक मानवीय हैं । यह काव्य-ग्रन्थ मानवतावाद से अधिक प्रभावित है । इसी प्रवृत्ति के अनुकूल कृष्ण का अंकन करने की चेष्टा की गई है । "कृष्णायन” :
कृष्णायन अवधी भाषा में तुलसी के रामचरितमानस की परम्परा पर लिखा हुआ श्रेष्ठ काव्य है । इसके कवि श्री द्वारिकाप्रसाद मिश्र हैं, जिन्होंने कृष्ण की संपूर्ण कथा को संकलित करके उसे महाकाव्य का रूप प्रदान किया है । मध्ययुगीन कवियों की कृष्ण संबंधी उक्तियाँ कहीं-कहीं भाषान्तर करके ज्यों-की त्यों उद्धृत कर दी गई हैं । आधुनिक युग में कृष्ण में १- जिये बाल गोपाल हमारा, ___ वह कोई अवतारी ॥ - द्वापर - यशोदा सर्ग । २- मेरे श्याम सलाने की है
मधु से मीठी बोली। कुटिल अलक वाले की आकृति, है क्या भोली भोली ॥ - द्वापर - यशोदा सर्ग ।
156 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास