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शील-सौजन्य, परदुख-कातरता, सरलता, सहज-स्नेह, शीलता, सहृदयता, शिष्टता, विनम्रता, शांतिप्रियता, मृदुता आदि का बारबार स्मरण करती है । वे निस्वार्थ भाव से लोक-सेवा में निरत हैं, इसलिए महात्मा कहे जाते हैं । उद्धव ने भी ब्रज से आकर गोपियों के सम्मुख उनको निष्काम वृत्ति, कर्तव्य-निष्ठा, न्याय-प्रियता, अनासक्ति तथा लोकोपकारी प्रवृत्तियों की प्रशंसा की है।
बाल-सुलभ लीलाओं का भी उल्लेख “प्रिय प्रवास में हुआ है । किन्तु उसमें कोई नवीनता नहीं है । बड़े होकर वे गोपी-वल्लभ तथा राधा-वल्लभ हो जाते हैं । कृष्ण राधा के प्रिय एवं प्रेमी दोनों रूपों में चित्रित किये गये हैं तथा उनके चारित्रिक गौरव की पूर्ण रक्षा की गई है। जयद्रथ वध :
मैथिलीशरण गुप्त ने प्रस्तुत काव्य में परंपरा से परे महाभारत के कृष्ण को लिया है । जयद्रथ-वध एक खण्ड काव्य है । इसमें गीता के उपदेष्टा कृष्ण के आदर्श को जनता के सम्मुख रखने की चेष्टा की गई है । राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये महाभारत के विस्मृत कृष्ण पर सर्व प्रथम दष्टि डालने वाले श्री मैथिलीशरण गुप्तजी ही हैं । द्वापर :
द्वापर के कृष्ण गतानुगतिकता का विरोध करते हैं तथा युग-धर्म के अनुकूल उसका परिष्कार करने पर बल देते हैं । द्वापर में कृष्ण के चरित्र-निर्माण में इसी सिद्धान्त पर अधिक बल दिया गया है । राष्ट्र तथा समाज की आवश्यकताओं के अनुकूल गोपाल कृष्ण की नवीन रूप में प्रतिष्ठा की गई है।
द्वापर" में कृष्ण गीता के कृष्ण हैं । सब धर्मों को त्यागकर जो उनकी शरण में आयेगा, उसे वे सब पापों से मुक्त कर देंगे । यशोदा उन्हें
१- थोड़ी अभी यदिच है उनकी अवस्था ।
तो भी नितान्त-रत वे शुभ कर्म में हैं। ऐसा विलोक वर-बोध स्वभाव से हो । होता सु-सिद्ध यह है, वह है महात्मा ॥
-प्रिय प्रवास, सर्ग १२, पद ९१ । २- कोई हो सब धर्म छोड़ त, आ, बस मेरा शरण धरे। डर मत, कौन पाप वह जिससे, मेरे हाथों तू न तरे ॥
-द्वापर-श्रीकृष्ण सर्ग।
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हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास • 155