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________________ छकना चाहता है । कृष्ण और गोपियों की रासलीला पर देव-देवियाँ तथा शिव-ब्रह्मा भी मोहित हो जाते है । भारतेन्दुजीने दानलीला रानीछद्मलीला मानलीला तथा फल-बुझौअल' - आदि स्फुट प्रबन्ध लिखे हैं तथा उनके अन्त में राधा-कृष्ण के विलास की दिव्यता का प्रतिपादन किया है । प्रेम माधुरी में कृष्ण के रूप तथा मुद्राओं का वर्णन किया गया है । प्रेम-तरंग” में कृष्ण शठ नायक के रूप में प्रकट होते हैं । "प्रेम-मालिका में कृष्ण के परकीया-प्रेम के अन्तर्गत उनकी विदग्धता, घृष्टता और लंपटता की अभिव्यक्ति हुई है । फूलों का गुच्छा” नामक काव्य में राधा-कृष्ण के माधुर्य-भाव की अभिव्यक्ति उर्दू-फारसी की प्रेम-वर्णन शैली पर हुई है। ब्रज भाषा के दूसरे आधुनिक कवि श्री जगन्नाथदास रत्नाकर' हैं । रत्नाकर' की कविता में कृष्ण का राधा-वल्लभ तथा गोपी-वल्लभ रूप खूब उभरा है । उद्धव शतक में राधाविषयक आसक्ति की गहनता का अत्यन्त मार्मिक चित्रण हुआ है । यमुना में स्नान करते हुए कृष्ण का उसकी जल धार में बहते हुए मुरझाए हुए कमल को देखकर राधा का स्मरण, मूर्छित होना, सचेत होने पर उद्धव के कंधे का सहारा लेकर डगमग चलना, चित्त की बेचैनी के कारण नेत्रों को न खोलना उनके राधा-प्रेम का परिचायक है । गोपी-प्रेम उद्धव के सन्दर्भ में प्रकट हुआ है। सत्यनारायण "कविरत्न बीसवीं शती के कवि हैं । भक्ति एवं राष्ट्रीयता आपके काव्य की मूल प्रेरणा है । भक्ति के क्षेत्र में वे भक्त कवियों की तरह कृष्ण के प्रति अपनी भावना व्यक्त करते हैं - वे दानशील, दयालु, अशरण-शरण, करुणासिन्धु तथा शरणागत-वत्सल कह गये हैं । कृष्ण का यह रूप रुढ़िगत है । कृष्ण गोपी-वल्लभ हैं । "प्रिय प्रवास : अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' द्वारा विरचित "प्रिय प्रवास खड़ीबोली का प्रथम महाकाव्य है । इसमें कृष्ण को केवल लौकिक नर रूप में ही चित्रित किया गया है | बुद्धिवाद, आदर्शवाद, जातीयता तथा राष्ट्रीयता आदि प्रवृत्तियों से प्रेरणा लेकर हरिऔघजी ने कृष्ण को एक महामानव का रूप प्रदान किया है । भागवत के गोपाल कृष्ण को नर रूप में उपस्थित करने का श्रेय हरिऔधजी को ही है । समस्त अलौकिक तत्त्वों का वि करके कृष्ण को लौकिक रूप प्रदान किया गया है ।। ___“प्रिय प्रवास के कृष्ण आदर्श मानव है । विभिन्न पात्रों द्वार कृष्ण के गुणों का गान किया गया है । यशोदा उनकी अनुरंजनकारी प्रवृत्ति, सौम्यता, 154 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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