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________________ पुराण में यही वर्णन व्यापारियों द्वारा कराया है । इन पुराणों के अनुसार जरासंध का युद्ध ही महाभारत का युद्ध था । मध्यकालीन साहित्य में कृष्ण का जो स्वरूप हमारे सामने आता है वह है उनका बाल-गोपाल रूप । यह उनके परम्परागत व्यक्तित्व से कुछ भिन्न है। कृष्ण के इस स्वरूप पर वैष्णव परम्परा तथा संस्कृत हरिवंश पुराण का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । इन दोनों का प्रभाव हिन्दी जैन काव्य कृतियों पर द्रष्टव्य है । इन कृतियों में नटखट ग्वाल-बालक के रूप में कानों में कुण्डल पहनने, पीताम्बर धारण करने, मुकुट लगाने, बांसुरी बजाने आदि का तथ्यात्मक वर्णन हुआ है । हिन्दी जैन साहित्य में कहीं भी कृष्ण व गोपियों की रासलीला व राधा का वर्णन नहीं है । कृष्ण का द्वितीय स्वरूप अर्द्धचक्रवर्ती राजा के रूप में, एक महान वीर अद्वितीय पराक्रमी तथा शक्ति-सामर्थ्य से परिपूर्ण शलाका पुरुष थे। __कृष्ण का तृतीय स्वरूप एक धर्मनिष्ठ आदर्श राजपुरुष के रूप में वर्णित है, जिनका अरिहन्त अरिष्टनेमि एवं उनके धार्मिक सिद्धातों के प्रति श्रद्धाभाव है। (ग) आधुनिक हिन्दी साहित्य में कृष्ण का स्वस्प और जैन - साहित्य में निरुपित कृष्ण से उसकी तुलना : आधुनिक काल के हिन्दी कवियों ने जहाँ कृष्ण के परम्परागत स्वरूप वर्णन को अपनी कृतियों का आधार बनाया है वहीं नए युग-बोध के अनुरूप कृष्ण के महामानवत्व के स्वरूप को भी प्रस्तुत किया है । आधुनिक साहित्य में कृष्ण का रूप भी परिवर्तित होकर एक नए रूप में हमारे सामने आता है । बुद्धिवाद, आदर्शवाद, जनवाद, मानववाद, राष्ट्रवाद तथा क्रान्तिवाद इस युग की प्रधान प्रवृत्तियाँ थी। उनके प्रकाश में कृष्ण को एक नवीन रूप में देखा गया। - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र नई धारा के कवि थे। उनकी अधिकांश कविता कृष्ण-भक्त कवियों के अनुकरण पर गेय पदों के रूप में है, जिनमें राधाकृष्ण की प्रेमलीला और विहार का वर्णन है । उनके पदों में दो प्रकार के पद विशेष हैं - विनय संबंधी तथा प्रेम संबंधी । विनय के पदों में विष्णु और कृष्ण की अभिन्नता स्थापित करके कवि उनसे 'महापतितं को तार देने की प्रार्थना करता है । प्रेम संबंधी पदों में राधा-कृष्ण का प्रेम व्यंजित हुआ है । कवि स्वयं भी राधा-कृष्ण की प्रेम-मदिरा के आनन्द से १- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल : हिन्दी साहित्य का इतिहास - पृ. ५९१ । हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 153
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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