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________________ लीला के उपासक हैं तथा सखी भाव से युगल की मानसी आराधना करते है। आपने श्रीकृष्ण लीला के व्यावहारिकी, प्रतिभासिकी. वास्तवी-तीन भेद माने जो क्रमशः श्रेष्ठ हैं । नित्य ब्रजलीला व्यावहारिकी लीला है । नित्य रासलीला, प्रतिभासिकी है एवं दिव्य ब्रह्मपुर की वास्तवी लीला को ब्रह्मानन्द मानकर ये उसकी उपासना करते थे। श्री श्यामा जू ठकुराइन रासेश्वरी श्री राधा पर आपका अनन्य प्रेम था । श्रीकृष्ण की पराभक्ति करने का उपदेश आपने दिया है। श्री प्राणनाथजी की वाणी के अन्तर्गत "श्रीधाम की पहेली" में घाट, पुल, महल, चबूतरा, पहाडों वाले धाम का वर्णन है, योगमाया प्रकरण में रास का तत्त्व बताया है तथा भागवत को सार में ब्रह्मलीला, ब्रजलीला, रासलीला की उत्तरोत्तर सूक्ष्मता बतायी है। (७) वंशीअलि के ललित सम्प्रदाय में कृष्ण : ललित सम्प्रदाय राधा कृष्ण भक्ति को लेकर चलने वाला एक नवीन सम्प्रदाय है । इसे वंशीअलि जी का सम्प्रदाय कहा जाता है । इस सम्प्रदाय में राधा को विशिष्ट स्थान की अधिकारी माना जाता है । यह स्थान हरिदासी एवं हरिवंशी सम्प्रदाय से कुछ और भी. विशेष है | श्री वंशीअलि की दृष्टि में श्री राधा का ही अमर नाम ब्रह्म है । वे ही परा शक्ति के रूप में सर्वत्र सूत्र की भाँति व्याप्त हैं और समस्त जड़-चेतन उन्हीं की स्वतंत्रता के आधीन है । किन्तु श्री राधा सर्वोपरि होते हुए भी भक्त- पराधीन हैं । श्रीकृष्णचन्द्र श्री राधा के अनन्य भक्त है अतः उनके साथ समान भाव से विहार करने के लिए ही श्री राधा ने अवतार ग्रहण किया है। श्री राधा सर्वेश्वरी है, अतः विहार में उनकी समानता और कृष्ण पत्नीत्व भक्तों के आनन्द के लिए ही है । वंशीअलि जी ने राधा को दार्शनिक आधार भी दिया है । राधा प्राधान्य के प्रभाव से महारास में राधा ही महारास की ठीक वैसी नायिका है जिस प्रकार श्रीमद्भागवत में श्रीकृष्ण । अतः यहाँ श्रीकृष्ण की स्थिति सेवक के समान है । वंशीअलिजी ने कहा है'सेव्य सदा श्री राधिका सेवक नंद कुमार । दूजे सेवक सहचरी; सेवा विपुल विहार ।। (८) मीरां सम्प्रदाय में कृष्णः मीरां सम्प्रदाय की प्रवर्तक मेवाड की रानी मीराबाई कही जाती हैं । इनका जन्म सन् १४९८ ई० में हुआ । कविता-काल १६ वीं शती है । आचार्य प्रवर्तित सम्प्रदायों की किसी परंपरा में उन्हें नहीं रखा जा सकता । उन्हें बचपन से कृष्ण को पति रूप में पाने की धुन थी। किसी अन्य 148 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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