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में बसने वाला है । जिसे वेद-तत्त्व और विचार से भी नहीं पाया जा सकता-उसी रस को स्वामी हरिदास प्रत्यक्ष रूप से पाते है । उनके इष्ट का नाम श्री कुंजबिहारी है । धाम वृन्दावन है और नित्य बिहार उनका क्रम है । हरिदासजी युगल की काम-केलि के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार के प्रेम प्रकाशन को महत्त्व नहीं देते ! सर्वदा नव-यौवन से उन्मत्त किशोर किशोरियाँ एक दूसरे के प्रेममें आबद्ध हैं।
नित्य बिहार में गोपियों की पहुँच नहीं है । यह सखी संप्रदाय है । सखी भी नित्य बिहारी परात्पर प्रेम का एक स्वरूप है । यह प्रेम परात्पर प्रेम है । नित्य तत्त्व है । अतः प्रेम के ये सभी स्वरूप नित्य हैं । सखी सहचरी नित्य है । इस नित्य आनन्द की उपासना भी नित्य है । (५) राधावल्लभ सम्प्रदाय में कृष्णः
- श्री राधावल्लभ सम्प्रदाय वृन्दावन का प्रमुख संप्रदाय है । यह सखि संप्रदाय है । श्रीकृष्ण तथा राधा इस संप्रदाय के उपास्य हैं । भक्ति में माधुर्य भावना की जो धारा निम्बाकाचार्य ने आरम्भ की थी राधावलल्भ सम्प्रदाय में आकर उसका विकास हुआ । राधा वल्लभ संप्रदाय की भावपूर्ण माधुर्य उपासना का श्रेय श्री हितहरिवंश गोस्वामी को है। ___ सम्प्रदाय में नित्य बिहारी युगल की उपासना की जाती है किन्तु उनकी भाव-पद्धति की विशेषता है-राधा की प्रधानता । उनकी हरिते प्रथम पूजियत राधा आराध्य मुख्य रूप से राधा तथा उनके द्वारा उन्हीं के संबंध से मधुर संबंध वाले कृष्ण उन्हें प्रिय थे । सुधर्म बोधिनी के अनुसार श्री राधा के चरणों में सुन्दर श्याम की अधिक आसक्ति देखकर ही हित हरिवंश उन पर रीझे थे । अतः राधावल्लभ सम्प्रदाय में श्री राधा-कृष्ण के अनुसंग से पूजित होते हैं । वस्तुतः राधा ही इस संप्रदाय की इष्ट हैं । वे कृष्ण की आराध्या हैं तथा प्रेम स्वरूपा हैं । (६) श्री प्राणनाथ जी के धामी सम्प्रदाय में कृष्णः
इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक श्री प्राणनाथजी थे । ये श्री राधाकृष्ण की रास १- श्रीकुंज बिहारी सर्व संसार-बिहारिनदास जी की वाणी, सिद्धान्त के पद, सं० १४१ । २- नित्य बिहारिनि नित्य बिहारी ।
नित्य निकुंज मंजु सुख पुंजनि, नित्य नेह उपचारी ॥ नित्यं सखी सहचरी, संपति वन, नित्य मोद मनुहारी । नित्य उपास किशोरदास बसि नित आनन्द उदारी ॥
-सिद्धान्त सार संग्रह किशोरदास, पृ० २१५ ।
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 147