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(२) निम्बार्क सम्प्रदाय
में कृष्ण :
निम्बार्क सम्प्रदाय के अनुसार ईश्वर चित् और अचित् हैं, साथ ही भिन्न भी है । एक मात्र वेदप्रमाण से जानने योग्य, सबसे भिन्न और फिर सबसे अभिन्न भी विश्वस्त भगवान ही ईश्वर तत्व है ।' वे स्वयं आनन्दमय है, और जीव के आनन्द का कारण भी है । वह पुण्य पाप से परे है ॥
सम्प्रदाय के कृष्ण सदैव राधा के साथ विराजित हैं । गोपियों से घिरे हुए कृष्ण को जिनमें राधा प्रधान है, महत्त्व दिया गया है । राधा कृष्ण को वामांगिनी कही गयी है । २ युगलकिशोर श्री साधा-कृष्ण की पूजा-उपासना और उनका ही ध्यान करने का विधान सम्प्रदाय में पद्मपुराण के पाताल खण्ड से लिया गया प्रतीत होता है । ३
निम्बार्क सम्प्रदाय में भागवत का विशेष आदर हैं । भागवत के अनुसार नवधा-भक्ति का महत्त्व यहाँ भी है । कीर्तन-पद्धति उनमें भी विशेष है । कृष्ण-राधा की माधुर्य - लीला इस सम्प्रदाय की प्रमुख भावलीला है । साधना और सिद्धान्त अथवा आधार - पक्ष तथा मान्यता -पक्ष दोनों में ही निम्बार्क सम्प्रदाय भागवत से प्रभावित हैं ।
सम्प्रदाय की अनुरागात्मिका उपासना में निकुंजबिहारी श्रीराधा प्रिया-प्रियतमा के भाव से आराध्य हैं । इस भाव का स्थल इस भूमण्डल से परे गोलोक धाम है जिसका दूसरा रूप ब्रज - मण्डल में नित्य वृन्दावन धाम है ।
(३) चैतन्य अथवा गौड़ीय सम्प्रदाय में कृष्ण :
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चैतन्य सम्प्रदाय के अनुयायी श्री चैतन्य महाप्रभु को साक्षात् कृष्ण मानते हैं । श्रीकृष्ण राधा - भाव का आस्वाद करना चाहते थे । केवल कृष्ण रूप से तो उनका अवतार ब्रज में ही हो चुका था, अब राधा - भाव से संयुक्त होकर उन्होंने प्रेमरस - माधुरी का आस्वादन कराने के हेतु नवद्वीप में अवतार लिया । अतः चैतन्यदेव कृष्ण-राधा संयुक्तावतार है । उनका गौर १- वेदान्त पारिजात सौरभ- १-१-२, ४, १०, १२
२ - अंगेतु बामे वृषभानुजां मुदा, विराजमानामतस सौभगाम् ।
सखी सहस्त्रैः परिसेवितां सदा, स्मरेय देवीं सकलेष्टकामदाम् ॥
- दशश्लोकी, श्लोक - ५
३- पद्मपुराण- पाताल खण्ड, अध्याय ८१ - ३५ -५० श्लोक ४- राधा भाव कांति दुइ अंगीकार करि ।
श्रीकृष्ण चैतन्य रूप कइल अवतार ॥ चै. च. आदि लीला ४ पृ. २५
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास
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