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वीरता, तेजस्विता, अप्रतिम शक्ति सम्पन्नता आदि का वर्णन है । इसमें कृष्ण के बाल काल के पराक्रम की अनेक क्रीडाओं का वर्णन हैं । कृष्ण को सर्वगुण सम्पन्न विशिष्ट उत्तम पुरुष के रूप में वर्णित किया
(ख) मध्यकालीन वैष्णव सम्प्रदायों में कृष्ण का स्वरूप तथा
मध्यकालीन हिन्दी जैन साहित्य से उसकी तुलना :
मध्ययुगीन कृष्ण-साहित्य परिमाण और गुण दोनों में श्रेष्ठ है । अनेक कवियों ने काव्य लिखकर कृष्ण-काव्य की श्रीवृद्धि की है । मध्कालीन सम्प्रदायों के अधिकांश भक्त वाणीकार हैं । पत्र-पुष्प के साथ इन भक्त कवियों ने अपनी भावना-बद्ध वाणी का नैवेद्य भी भगवान कृष्ण को समर्पित किया है । प्रत्येक सम्प्रदाय में कृष्ण का स्वरूप अभिन्न होते हुए भी भिन्न रूप में अभिव्यक्त हुआ है । मध्ययुगीन सम्प्रदायों ने कृष्ण के विविध रूपों को अपने-अपने साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से देखा है । श्रीकृष्ण के संबंधित प्रमुख रूप से निम्नलिखित सम्प्रदाय आते हैं(अ) १. वल्लभ सम्प्रदाय
२. निम्बार्क सम्प्रदाय ३. चैतन्य अथवा गौडीय सम्प्रदाय ४. हरिदासी सम्प्रदाय ५. राधावल्लभ सम्प्रदाय ६. श्रीनाथजी के धामी सम्प्रदाय में कृष्ण ७. वंशी अलि के ललित सम्प्रदाय में कृष्ण
८. मीरा सम्प्रदाय में कृष्ण (ब) उत्तर मध्ययुगीन (रीतिकाल) हिन्दी साहित्य में कृष्ण
(क) रीति-मुक्त कवियों के साहित्य में कृष्ण का स्वरूप अ (१) वल्लभ सम्प्रदाय में कष्ण :• वल्लभ सम्प्रदाय में श्रीकृष्ण को परब्रह्म माना जाता है । जिस परम तत्त्व को श्रतियों ने परब्रह्म कहा है, उसी को वल्लभाचार्यजी ने पुराणेश्वर पुरुषोत्तम कहा है । जब भगवान व्यापी वैकुण्ठ में विराजते हैं तब १- परब्रह्म तु कृष्णो हि सच्चिदानन्दक बृहत्-सिद्धान्त मुक्तावली श्लोक ३ ___षोडष ग्रन्थ पृ. २४ । । २- यत्र येन यतो यस्य यस्मे यद्यद्यथा यदा ।
स्यादिदं भगवान्साक्षात्प्रधान पुरुषेश्वरः ॥...... तत्वदीप निबन्ध शास्त्रार्थ प्रकरण ज्ञान सागर बम्बई, पृ. २३७ ।
140 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास