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जैन दष्टि में कृष्ण निकट भविष्य में होने वाले भगवान हैं । भविष्य में होने वाले तीर्थंकरों में श्रीकृष्ण बाहरवें क्रम के अमम" नामक तीर्थंकर होंगे । यह तो उनकी आत्मा के महत्त्व को समझते हुए जैन शैली से उसको स्थान दिया गया है । किन्तु यही आत्मा कृष्ण के स्वरूप में भी जैन दृष्टि से एक अति उच्च कोटि की आत्मा स्वीकार करने में आई है । धार्मिक तथा राजनीतिक दोनों ही क्षेत्रों में श्रीकृष्ण विलक्षण प्रतिभा के स्वामी थे । जो व्यक्ति पक्का राजनीतिज्ञ होते हुए भी धर्मात्मा हो, ऐसे ही व्यक्ति श्रीकृष्ण थे । श्रीकृष्ण महाभारत के युद्ध के पक्ष में नहीं थे । किन्तु उनके प्रयत्नों के उपरान्त भी जब युद्ध शुरु हो गया तब पाण्ड्वों का पक्ष लेकर उन्हें विजयश्री से मंडित करने में भी कृष्ण का उद्देश्य सामाजिक तथा धार्मिक दोनों ही था । उनका उद्देश्य दुष्टों का आधिपत्य समाप्त करके उनके स्थान पर सत्पुरुषों का स्थापित करना था।
जैन महाभारत में कृष्ण के मन में एक ही न्याय की परिभाषा थी, एक ही सत्य था । उनकी राजनीति भी यही थी, जगत् पर से दुष्टों का शासन समाप्त हो तथा उसे दूर करने के लिए जो कुछ भी करना पड़े वह न्याय, जो कुछ बोलना पड़े वह सत्य, जो कुछ करना पड़े वह नीति । कृष्ण का यह सत्य जैन परम्परा के अनुसार अनुबन्ध सत्य कहलाता है।
जैन शैली के अनुबन्ध सत्य को जानने वाली आत्माएँ कृष्ण के स्वरूप को जितना न्याय दे सकती हैं उतना न्याय अजैन लोग भी नहीं दे सकते । श्रीकृष्ण का सत्य, न्याय, नीति, दया इत्यादि सभी अनुबन्ध परिणाम पर आधारित है । परिणाम को ध्यान में रखकर ही कृष्ण ने उसको प्राप्त करने के साधन निश्चित किये । जैन शैली में कृष्ण का गीता का उपदेश नहीं है । इसके विपरीत अर्जुन ने महाभारत के युध्ध में जब अपने बन्धुओं से लड़ने को मना किया तब श्रीकृष्ण ने कहा- ये सभी व्यकित अपने पाप के भार से मरने वाले हैं । तू तो निमित्त मात्र है । इसके विपरीत अजैन महाभारत में कृष्ण अर्जुन से कहते हैं - तू कहाँ किसी को मारने वाला है । मारने तथा जीवन देने वाला तो मैं ईश्वर हूँ। तुझे तो सिर्फ बाण चलाने का कार्य करना है।"
महाभारत से अनुप्राणित होकर पौराणिक काल में कृष्ण के विविध रूपों की विस्तृत व्याख्याएँ प्रस्तुत की गईं, यद्यपि इनमें प्रधानता इनके अव्यक्त
और व्यक्त रूपों की रही । ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण, विष्णुपुराण, भागवतपुराण, वायुपुराण, अग्निपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, स्कन्दपुराण, वामनपुराण, गरुडपुराण, हरिवंशपुराण, आदि सभी पुराणों में श्रीकृष्ण के विविध रूपों और लीलाओं
138 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास