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हेमचन्द्र राय चौधरी ने अपने वैष्णव धर्म सम्बन्धी ग्रन्थ में कृष्ण और वासुदेव का पार्थक्य स्वीकार नहीं किया है । अपने मत की पुष्टि में उन्होंने कीथ के लेख का उदाहरण दिया है ।।
वासुदेव और श्रीकृष्ण का सामंजस्य घदित करने के लिए यह भी कहा जाता हैं कि वासुदेव मुख्य नाम था और कृष्ण गोत्रसूचक नाम के रूप में प्रयुक्त होता था । घटजातक में वासुदेव के साथ कृष्ण या कान्ह एक विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुआ है, किन्तु उससे भिन्न व्यक्तित्व सूचित नहीं होता । दीर्धनिकाय के अनुसार वासुदेव का ही दूसरा नाम कृष्ण था । महाभाष्यकार पतंजलि ने एक स्थान पर लिखा है कि - कृष्ण ने कंस को मारा और दूसरे स्थान पर लिखा है कि वासुदेव ने कृष्ण को मारा । ईस कथन से यह ज्ञात होता हैं किं वासुदेव और श्रीकृष्ण एक ही हैं । महाभाष्यमें वासुदेव शब्द चार बार ओर कृष्ण शब्द एक बार आया है । पाणिनि, कात्यायन और पतंजलि जैसे वैयाकरणों के ग्रन्थों में वासुदेवक एवं जघान कंस “किल वासुदेवः आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है । चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में मकदूनिया के राजदूत मैगस्थनीज ने सात्वतों और वासुदेव कृष्ण का स्पष्ट उल्लेख किया है । डॉ. राजकुमार वर्मा कृष्णको वासुदेव का पर्यायवायी मानते हैं । आर. जी. भण्डारकर ने अपने वैष्णविज्म और शैविज्म ग्रन्थ में वासुदेव संबंधी शिलालेखों का वर्णन किया हैं । . इस प्रकार हम देखते है कि वैदिक परम्परा में वासुदेव अनेक नहीं, अपितु एक ही हुए हैं। श्रीकृष्ण को ही वहाँ वासुदेव कहा गया है । किन्तु जैन परम्परा में वासुदेव नौ हैं । श्रीकृष्ण उन सभी में अंतिम वासुदेव थे।६ श्रीकृष्ण को जैन और वैदिक दोनों ही परम्पराओं ने वासुदेव माना है। 1 - "But it is impossible to accept the Statement that Krishna
Whom epic tradition identifies with Vasudeo was originally an altogether different individual. On the contrary, all available evidence, Hindu,' Buddhist, and Greek, points to the Correctness of the identity, and we agree with Keith when he says that "the separation of Vasudeva and Krishna as two entities it is impossible to justify." ___-H. Ray chaudhuri, early history of the Vaishanav Sect., P.36 २- हिन्दी साहित्य में राधा : पृ. ३१ से उद्धत । ३- हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास : रामकुमार वर्मा, पृ. ४७२ । ४- वैष्णविज्म-शैविज्म-भन्डारकर, पृ. ४५ । । ५- वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनंजय-गीता १०/३७ । ६- नवमो वासुदेवोऽयमिति देवा जगुस्तदा -जैन हरिवंशं पुराणं ५५/६० ।
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास • 135