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प्रद्युम्न के द्वारका लौटते ही इस प्रसंग का अन्त हो जाता है। पर हिन्दू कथा में उसके अन्य अनेक पराक्रमपूर्ण कार्य आगे दिखाये गये हैं । उसका विवाह अपने मामा रुक्मी की पुत्री शुभांगी से होता है । पारिजात के लिए जब इन्द्र के विरुद्ध कृष्ण को युद्ध करना पड़ता है तब प्रद्युम्न जयन्त के विरुद्ध मोर्चा संभालता है । ब्राह्मण ब्रह्मदत्त के युद्ध में जब दैत्यों द्वारा उसकी कन्याओं का हरण होता है, तब प्रद्युम्न माया द्वारा उनकी रक्षा करता है । निकुम्भ राक्षस जब भानुमती का अपहरण करता है तब अन्त में प्रद्युम्न उसका उद्धार कर उसे लेकर द्वारका पहुंचाता है । त्रिलोक-विजय की आकांक्षा रखनेवाले असुरराज बज्रनाम का वध प्रद्युम्न के हाथ से होता है ।
जैन हरिवंश के अनुसार द्वारका में यादवों के बढ़ते हुए वैभव को सुनकर जरासंध युद्ध के लिए फिर उद्यत होता है और इस बार के युद्ध में कृष्ण द्वारा उसका संहार होता है । महाभारत के अनुसार कृष्ण, भीम तथा अर्जुन ब्राह्मण वेश में राजगह जाते हैं । यहाँ पर भीम का जरासंध से द्वन्द्व युद्ध होता है तथा जरासंध की मृत्यु होती है । हरिवंश में जरासंध की मृत्यु का वर्णन नहीं मिलता।
जैन धर्म की कृष्णकथा में द्वैपायन अथवा कृष्ण द्वैपायन मुनि के क्रोध अथवा अभिशाप से द्वारकापुरी के भस्म होने या यादव-कुल के नष्ट होने की बात कही गई है । जैन कथा में बलदेव के पूछने पर जिनेन्द्र नेमिनाथ (अरिष्टनेमि) बारह वर्ष पश्चात् घटित होने वाले विनाश का पूरा ब्यौरा भविष्य वाणी के रूप में दे देते हैं और तद्नुरूप ही सब कुछ होता है । .
हिन्दू कथा में द्वैपायन के अभिशाप या क्रोध की चर्चा कहीं नहीं है । और न द्वारका का नाश या कृष्ण का निधन दिखाया गया है । केवल पूर्व-सूचना के रूप में एक स्थान पर उसका संकेत-मात्र है । जरत्कुमार, जिसके बाण से घायल होकर कृष्ण की मृत्यु होती है, जबकि जैन-कथा में
१- हरिवंशः २, ७३ । . २- वही, २,८३ । ३- वही, २, ९७ । ४- (क) जिन-हरिवंश, सर्ग ५१ ।
(ख) हरिवंश पुराणः खुशालचन्द्र काला, दोझ ८३५ । ५- (क) जिन-हरिवंश, सर्ग ६१, ६२,
(ख) हरिवंश पुराण, खुशालचन्द काला, संधि ३३ । ६- हरिवंशः २, १०२ ।
126 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास