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मंत्रणा करते हैं और वे पश्चिम दिशा की ओर चल पड़ते हैं । जरासंध उनका पीछा करता है । विन्ध्याचल के वन में एक देवी कृत्रिम चिताएँ जलाकर यादवों के नष्ट होने का मिथ्या समाचार फैलाती है और जरासंध को वापस कर देती है । यादवों के समुद्र-तट पर पहुँचने पर कुबेर द्वारकापुरी की रचना करते हैं।
श्रीकृष्ण और रुक्मिणीके पुत्र प्रद्युम्न का आख्यान हिन्दू और जैन धर्मों में कुछ समान होते हुए भी भिन्नता रखता है । जैन मान्यतानुसार प्रद्युम्न को शिशु अवस्था में ही उसके पूर्वभव का वैरी धूमकेतु नामक असुर हर ले जाता है । मूधकूट नगर के राजा कालसंवर विद्याधर द्वारा उसकी रक्षा होती है । कालसंवर की स्त्री कनकमाला प्रद्युम्न के रूप पर आसक्ति अनुभव कर पहले उससे प्रेम करती है और उसके विफल होने पर अपना रूप बिगाड़ कर उस पर बलात्कार का आरोप लगाती है । कालसंवर और उसके पाँच सौ पुत्र प्रद्युम्न के प्राणों के गाहक बन जाते हैं । प्रद्युम्न किसी प्रकार उस प्रेम-जाल से बचकर मार्ग में अद्भुत कृत्य करता हुआ अपने मां-बाप की नगरी द्वारका पहुँचता है और अनेक मायापूर्ण क्रीड़ाएँ करने के पश्चात् अपना असली रूप प्रकट करता है ।
हिन्दू हरिवंश के अनुसार प्रद्युम्न-जन्म के सातवें दिन दैत्यराज शंबरासुर उन्हें हर ले जाता है और पुत्र-रूप में अपनी रूपवती भार्या मायावती के हाथ में देता है । मायावती में पूर्व-काल की स्मृति जाग उठती है कि यह तो पूर्व-जन्म में उसका प्रियतम पति था । वह धाय के हाथ प्रद्युम्न का पालन कराती है और रसायन के प्रयोग से उसे शीघ्र ही बड़ा कर देती है । जब प्रद्युम्न पर मायावती का मंतव्य प्रकट होता है और उसके मुख से वह अपने अपहरणकर्ता के विषय में सुनता है तो वह अत्यन्त कुपित होकर शंबरासुर का युद्ध में आह्वान करता है । युद्ध के मध्य नारद प्रद्युम्न को बताते हैं कि वह पूर्वभव का कामदेव है और मायावती उसकी स्त्री रति है । शंबरासुर का संहार कर प्रद्युम्न मायावती से मिलता है और दोनों सानन्द द्वारका लौटते हैं ।
जैन-कथा में प्रद्युम्न और उसकी प्रेमिका को पूर्वभव के कामदेव और रति रूप में नहीं ग्रहण किया गया है । दूसरी बात यह है कि जैनकथा में १- (क) जिन हरिवंश, सर्ग ४० ।
(ख) हरिवंश पुराणः खुशालचन्द काला, संधि ४७ । २- (क) जिन-हरिवंश पुराण, सर्ग ४७ ।
(ख) हिन्दी जैन हरिवंश पुराणः खुशालचन्द कालाः संघि २ ।
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 125