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देते हैं । इधर रुक्मिणी कृष्ण पर आसक्त हुई, इधर नारद उसका चित्रपट लेकर कृष्ण के पास पहुँचते हैं और उन्हें रुक्मिणी उनके प्रति अनुरक्त बताते हैं । रुक्मिणी की फ़फी मध्यस्थ बनती है और कृष्ण को गुप्त पत्र लिखती हैं । कृष्ण कुंडिनपुर पहुंचते हैं और पूजा के बहाने उद्यान में आई हुई रुक्मिणी का हरण कर उसे द्वारका लाते हैं ।
रुक्मिणी के विवाहोपरान्त सत्यभामा के मन में उसके प्रति सपत्नीभाव उत्पन्न होता है और वह उस रूपवती को देखने के लिए कृष्ण से आग्रह करती है ।
जैन कथा में शिशुपाल का वध रुक्मिणी-हरण के अवसर पर दिखाया गया है, जबकि हिन्दू कथा में उसका वध युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के अवसर पर होता है।
जरासंध की सेना जब दूसरी बार मथुरा पर आक्रमण करती है उसके बाद के घटनाक्रम में हिन्दू और जैन कथाओं में अन्तर है । हिन्दु हरिवंश के अनुसार विदुर का उपदेश स्वीकार कर कृष्ण-बलराम मथुरा निवासियों को युद्ध के भीषण परिणामों से बचने के लिए मथुरा-त्याग का निश्चय करते हैं । मथुरा से प्रस्थान कर वे दक्षिण भारत की ओर जाते हैं और मार्ग में परशुराम से भेंट होने पर उनका परामर्श मान कर गोमन्त पर्वत पर चढ़ते हैं । जरासंध द्वारा गोमन्त पर्वत में आग लगाये जाने पर वे शत्रु-सेना पर टूट कर उसका विनाश करते हैं और जरासंध को पलायन के लिए विवश करते हैं । तत्पश्चात् दोनों भाई मथुरा लौट आते हैं । फिर वे रुक्मिणी-स्वंयवर में जाते हैं जहाँ से उनके वापस आने के बाद कालयवन मथुरा पर आक्रमण करता है । तब कृष्ण अपने सर्ग-संबंधियों के साथ अंतिम बार मथुरा का परित्याग करते हैं और समुद्र-तट पर पहुँच कर द्वारका को अपना निवासस्थान बनाते हैं ।
जिन हरिवंश के अनुसार जब कालयवन और अपराजित मारे जाते हैं तब जरासंध स्वयं शौर्यपुर पर आक्रमण करता है । इस पर यादव परस्पर
१- (क) जिन-हरिवंश, सर्ग ४२,
(ख) हरिवंश पुराणः खुशालचन्दकाला, संधि १८, पृ० ११६ - १७१ । २- जिन-हरिवंश, सर्ग ४३ । ३- (क) जिन-हरिवंश पुराण, ४२, ९४ ।
(ख) हरिवंश पुराणः खुशालचन्द कालाः दोहा ७३८-७५२, पृ० ११४ ४- हरिवंश २, ३६-४५ ।
124 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास