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कंस के निधन से विधवा बनी जीवघशा के करुण विलाप से कुद्ध होकर जरासंध, जैन-कथा में, कृष्ण से प्रतिशोध लेने के लिए पहले आपने पुत्र कालयवन को भेजता है और उसके मारे जाने पर जरासंध का भाई अपराजित प्रबल सेना के साथ शत्रु पर आक्रमण करता है । हिन्दू कथा में जरासंध स्वयं ही ससैन्य मथुरा पर चढ़ाई करता है और सेना के पराजित होने पर बलराम से गदा-युद्ध करता है और हार कर भाग निकलता है ।
जैन कथा में जिस कालयवन को जरासंध का पुत्र कहा गया है वह हिन्दू कथानुसार गार्य महामुनि का पुत्र है जिसे उन्होंने १२ वर्ष के तप और शंकर के वरदान से प्राप्त किया है । वह मथुरा-मण्डल में उत्पन्न लोगों द्वारा अवध्य है । जरासंध तथा अन्य कृष्ण-विरोधी राजाओं के अनुनय पर वह मथुरा के प्रति अभियान करता है और पलायमान कृष्ण की चाल से राजा मुचकुन्द के कुपित नेत्रों द्वारा भस्मीभूत होता है।
सत्यभामा-रुक्मिणी-नारद-प्रसंग जैन और हिन्दू-कथाओं में भिन्नता लिए हुए है । हिन्दू हरिवंश में सत्यभामा की रुक्मिणी के प्रति ईर्ष्या का कारण पारिजात-पुष्प है जिसका वृक्ष कृष्ण, नरकासुर के वध के पश्चात् सत्यभामा के साथ स्वर्ग जाकर इन्द्र के उद्यान से उखाड़ कर लाये थे । जिन-हरिवंश में पारिजात-प्रसंग नहीं है । सत्यभामा और रुक्मिणी के परस्पर ईर्ष्यालु होने में नारद की भूमिका दोनों कथाओं में आती है, पर कुछ भिन्नता के साथ । हिन्दू कथानुसार रैवत पर्वत पर रुक्मिणी के व्रतोधान के अवसर पर कृष्ण पारिजात पुष्प देकर रुक्मिणी का सम्मान करते हैं । इस पर नारद सत्यभामा से रुक्मिणी के सर्वाधिक सौभाग्य की प्रशंसा करते हैं जिसे सुनकर सत्यभामा अतिशय ईर्ष्या से भर जाती है और कोप-भवन में चली जाती है । श्रीकृष्ण के मनाने पर उसका मन स्वस्थ होता है और वह खेद प्रकट करती है। ___ जैन कथा-रूप के अनुसार नारद कृष्ण के अन्तःपुर में जाते हैं किन्तु सत्याभामा अपने श्रृगार में लीन होने के कारण उनका स्वागत नहीं करती है । सत्यभामा का मान भंग करने के लिए नारद कुंडिनपुर पहुंचते हैं और राजकुमारी रुक्मिणी को देखकर उसे कृष्ण की पटरानी होने का आशीर्वाद १- जिन-हरिवंश पुराण : ३६, ७०-७३ २- हरिवंश २, ३६ । ३- हरिवंश, २, ५३ । ४- हरिवंश, २, ५७ । ५- हरिवंश २, ६५ । '
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 123