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कथानुसार चम्पक और पादामर (पद्मावत ) नामक दो हाथी दोनों भाइयों पर हूल दिये जाते हैं । बलदेव चम्पक को तथा कृष्ण पादामर को समाप्त कर रंगभूमि में प्रवेश करते हैं । हिन्दू हरिवंश के अनुसार कृष्ण चाणूर का वध करते हैं और बलराम मुष्टिक का । जैन मान्यतानुसार भी चाणूर कृष्ण द्वारा मारा जाता है और मुष्टिक बलराम द्वारा । दोनों कथाओं में मल्लों के मारे जाने की क्रिया भिन्न रूप से वर्णित है । जैन - कथा में जब कृष्ण चाणूर के साथ गुथे होते हैं तब मुष्टिक पीछे से उन पर प्रहार करना चाहता है । यह देखकर बलराम उसे एक मुक्के से निष्प्राण कर देते हैं 1
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हिन्दू और जैन मान्यताओं में कंस की मृत्यु के विषय में लगभग समानता कृष्ण कंस को केश पकड़ कर उसे घसीटते हैं और शिलातल पर पटक कर उसके प्राण ले लेते हैं ।
कंस के जन्म के विषय में हिन्दू कृष्ण-कथा के अनुसार वह उग्रसेन. का जारज नहीं, क्षेत्रज पुत्र है । उसकी माता से सुयामुन पर्वत पर दानवराज दुमिल ने उग्रसेन का छद्म रूप बनाकर समागम किया जिससे कंस की उत्पत्ति हुई । जिनसेन के हरिवंश पुराण के अनुसार कंस राजा उग्रसेन और पद्मावती का पुत्र है । उसके गर्भ - स्थित होते ही पद्मावती के मन में नर - माँस- भक्षण आदि की क्रूर इच्छाएँ उत्पन्न होने लगी । अतः पुत्रोत्पत्ति के साथ ही उसे कुलघाती समझ, कांसे की पिटारी में भर कर नाम - मुद्रिका के साथ यमुना में बहा दिया गया । एक कलारिन के हाथ उसका संरक्षण तथा पालन-पोषण हुआ । बड़ा होकर जब वह अत्यन्त उत्पाती हुआ तब कलारिन ने उसे घर से निर्वासित कर दिया और वह जाकर वसुदेव का शिष्य बन गया । अन्ततः जरासंध की घोषणा पर सिंहरथ को पकड़ लाने के पश्चात् जीवयशा के विवाह के प्रश्न पर कंस के राजवंशी होने का भेद प्रकट हुआ । कांसे की पिटारी से प्राप्त होने के कारण उसका नाम कंस पड़ा यह उल्लेखनीय है कि हिन्दू - कथा - रूप में वसुदेव और कंस में गुरु-शिष्य सम्बन्ध नहीं मिलता । जैन मान्यतानुसार वसुदेव के उपकारों से अनुगृहीत होकर कंस उन्हें अपनी राजधानी मथुरा ले जाता है और अपनी बहिन देवकी का विवाह उनके साथ करता है
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१ - हरिवंश, २, ३० तथा जिन - हरिवंश पुराण - ३६, ४५ । (हरिवंश पुराण) खुशालचन्द्र काला, दोहा १९४ - १९५
२- हरिवंश २, २८ ।
३- (क) जिन - हरिवंशपुराण ३३, २३
(ख) हरिवंश पुराण खुशालचन्द्र संधि १४
122 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप - विकास