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जैन कृष्ण कथा में देवकी पुत्र को देखने के लिए मथुरा से गोकुल जाती है। जैन कथा में यह भी एक नवीन उद्भावना है कि देवियों के प्रयत्नो के विफल होने पर कंस कृष्ण की खोज में स्वयं गोकुल जाता है । पर माता यशोदा, इसकी गंध लगने पर, किसी बहाने कृष्ण-बलराम को ब्रज भेज देती है, जहाँ कृष्ण ताडवी राक्षसी का वध करते हैं। ___कंस की घोषणा पर कृष्ण का नागशैय्या पर चढ़कर अजितंजय धनुष
की प्रत्यंचा चढ़ाना और पाँचजन्य शंख फँकना भी जैन कृष्ण-कथाकी अपनी विशेषता है । नागशैय्या की कल्पना हिन्दू-कथा की कालियनाग पराजय से अनूप्रेरित प्रतीत होती है।
जैन-कथा में ऐसा उल्लेख है कि जब कंस ने कृष्ण बलराम को गोकुल से मथुरा बुलाया तो उसकी नीयत के प्रति आशंका से भरकर वसुदेव ने शौर्यपुर के समुद्रविजय आदि यादवों को मथुरा बुला लिया । हिन्दू-कथा में न तो वसुदेव के समुद्रविजय आदि भाइयों का प्रसंग है, और न उनके इस प्रकार के बुलाने जाने का। ___ मल्लयुद्ध के लिये कंस द्वारा आहूत होने पर कृष्ण-बलदेव जब अखाड़े के लिए चलते हैं तो, हिन्द-कथा में वे एक धौबी का, जो माँगने पर. उन्हें रंगीन कपड़े नहीं देता और दुविनीत भाव से बोलता है, वध करते हैं, गुणक नामक माली को जो प्रेमपूर्वक उन्हें मालाएँ समर्पित करता है, वरदान देते हैं, कुब्जा के प्रेमभाव पर रीझकर उससे अंगराग स्वीकार करते हुए उसका कुबड़ापन दूर करते हैं और कंस का अत्यन्त समृद्धिशाली विशाल धनुष भंग करते हैं । जैन-कथा में कृष्ण-बलदेव के किसी ऐसे काम का उल्लेख नहीं है । उसमें एक दूसरी ही उद्भावना है, कंस-भक्त तीन असुर रंगशाला के मार्ग में नाग, गधे और घोड़े का विकराल वेश बनाकर उनको हानि पहुँचाना चाहते हैं, पर दोनों भाई उन्हें मार भगाते हैं । . रंगशाला के द्वार पर हिन्दू कस के कुवलय गेड़ की जगह जैन
१- नीलवरण अति सोमैकल ।।
कोमल मन मोहन सुकुमाल । लखि सुकुमार सुषी अति भई ॥
तब देवकि मन साता लई ॥ -खुशालचन्द काला कृत हिन्दी हरिवंशपुराण, दोहा १२५, पन्ना ७६ । २- हरिवंश, पर्व-२, अध्याय २७ । ३- जिन-हरिवंशपुराण, ३६, ३५
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 121