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________________ है । हिन्दू कृष्ण-कथा में जरासंध की दो पुत्रियाँ कंस को ब्याही गई हैं और उनका नाम अस्ति और प्राप्ति है। नामों से भी अधिक भिन्नता घटनाओं, प्रसंगों और उपाख्यानों में मिलती है । जैन कथानुसार कृष्ण की वंश-परंपरा, जो काफी लम्बी है, हिन्दुओं से, नितान्त भिन्न है । जैन कथा-रूप की यह एक खास विशेषता है कि कृष्ण-जन्म के पूर्व उनके पिता वसुदेव के सौन्दर्य-प्रभाव, परिभ्रमण तथा अनेकानेक विवाहों का वृत्तान्त बड़े विस्तार से दिया गया है । कृष्ण जन्म की तिथियाँ और परिस्थितियाँ दोनों धर्मों में किंचित् भिन्न हैं । हिन्दू मान्यतानुसार कृष्ण भाद्रपद कृष्णाष्टमी को देवकी के गर्भ से अवतरित होते हैं । वे वसुदेव-देवकी की आठवीं सन्तान हैं । जैन धर्मानुसार कृष्ण का जन्म भाद्रपद शुक्ला द्वादशी को होता है । वे अपने माता-पिता की सातवीं सन्तान हैं । हिन्दुओं के लिए वे विष्णु के अवतार हैं, जैनों के लिए नवें वासदेव हैं। , कंस से कृष्ण की रक्षा की व्यवस्था दोनों धर्मों में लगभग समान है - दोनों में कन्या कृष्ण का स्थान ग्रहण करती है । हिन्दू धर्म में कंस उसे शिला पर पटक कर मारने का प्रयत्न करता है और आकाशगामिनी उस कन्यारुपिणी देवी से अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी सुनता है । जैन धर्म में कंस कन्या की नाक चपटी करके छोड़ देता है । शकट-भंजन, यमलार्जुन-भंजन आदि घटनाएँ हिन्दू-कथा में या तो कृष्ण की अद्भुत लीला या उनके बाल-पराक्रम के उदाहरण रूप में प्रदर्शित हैं, उनका कृष्ण को मारने के लिए कंस के उपायों से कोई सम्बन्ध नहीं है । परन्तु जैन कथानुसार ये कंस द्वारा कृष्ण के संहार के प्रयत्न हैं । पूर्वभव में कंस ने सात देवियाँ सिद्ध की थीं। वे ही देवियाँ कंस के आदेश पर शकट, क्रूरपक्षी, यमल, अर्जुन, पूतना, वृषभ और तीव्र वर्षा का रूप धारण कर कृष्ण के विनाश का प्रयत्न करती हैं । अंतिम घटना में उस हिन्दू कथा का जैन रूप चित्रित है, जिसमें इन्द्र-कोप के परिणाम स्वरूप अजस्र वर्षा से व्रजवासियों के रक्षार्थ कृष्ण गोवर्धन पर्वत धारण करते हैं । । १- भादौं बदि आवें दिन सार ।। जांनिसि उपनूं कृष्ण कुमार ॥ संखरु चक्र पदम लछि परे ।। सुजनां कै तौ सुख अवतरे ॥ -खुशालचन्द्र कालाः हरिवंश पुराण (हिन्दी हस्तलिखित) । २- जिन-हरिवंश पुराणंः सर्ग ५३, श्लोक ३८-४८ । ३- देवावन मैं आय मेघतणी वरषा करी गोवर्धनग ।। क्रिन उठायौ वावसौ -खुशालचन्द काला - दोहा १३५, पृ. ७६ । 120 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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