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१. समुद्रविजय २ अक्षौम्य, ३. स्तिमितसागर, ४. हितवान, ५. विजय, ६. अचल, ७. धारण, ८. पूरण, ९. अभिचन्द्र और १०. वसुदेव- ये दस पुत्र और दो कन्यायें कुन्ती और माद्री थीं ।
वसुदेव के पुत्र श्रीकृष्ण हुए ।
सारांश यह है कि वैदिक परंपरा की दृष्टि से भी श्रीकृष्ण और अरिष्टनेमि दोनों चचेरे भाई सिद्ध होते हैं । दोनों के परदादा युधाजित और देवमीढुष सहोदर थे ।
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वैदिक और जैन संस्कृति की परंपरा में यही अन्तर है कि जैन साहित्य कृष्ण के पिता वसुदेव समुद्रविजय के छोटे भाई हैं जबकि वैदिक परंपरा में चित्रक जोकि अरिष्टनेमि के पिता हैं वह वसुदेव के चचेरे भाई हैं । श्रीमद्भागवत् में चित्रक का ही "चित्ररथ नाम आया है ।
(२) वैदिक और जैन धर्मों में प्रचलित कृष्ण के कथा - रूपों का तुलनात्मक अध्ययन :
जैन और वैदिक दोनों धर्मों में प्रचलित कृष्ण के कथा - रूपों के तुलनात्मक अध्ययन से उनमें न्यूनाधिक महत्त्व के कई अन्तर प्रकट होंगे । इनमें व्यक्तियों और स्थानों के नामों का अन्तर भी संमिलित है । जैन रूपमें हिन्दू - कथा की भाँति, वासुदेव के अतिरिक्त कृष्ण नारायण, केशव, माधव, आदि नामों का प्रयोग बराबर मिलता है । जैन कथा में, हिन्दू कथा के अनुकरण पर, कृष्ण के पिता का नाम वसुदेव और माता का नाम देवकी है । कंस को व्याही गई जरासंध की पुत्री का नाम जैन कथा में जीवयशा तामरपति के जुग सुत भया ।। सूर सुवीर नाम सूत दया ||
नरपति पुत्र निकौंदे राज || भयौ मुनी सुर निजि हित काज ॥ तव सुवीर मथुरा पुरि रह्यौ | सूर राय सौरी पुर लह्यौ ॥
सूरतिया सुर सुंदरिनाम || रूप मा इनि कौ रति काम | अंधक विष्टी सुत अवतरयौ ।। सम्यक् दिष्टी बहु गुण भरयौ |
जोवन करि कैंममित भयौ । पाप सुभदात्तिय सुखलयौ ॥ अंधकविष्टि सुभानारि ॥ तिनिकैं दस सुत उपजे सार ।। २२४
समदविजैमति सागर तीजौ ।। नाम भयौ हिमवांस सुसारो ॥
तूर्यविजैवल पंचम धारण ।। षष्टम नाम लह्यो अविकारो ॥
सपतम पूरण नाम विष्पातजू ।। अष्टम सूरभयौ अधिकारो ||
अभिनंदन नौमूं दसमुं ॥ वसुदेवजू कौं वर रूप अपाये ।।
जुग कन्या उत्तम भई || कूंती मी जानि ॥
खुशालचन्द्र काला - पन्ना १५ - १६, श्लोक सं. २९८ - २२७
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 119