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एक लाख वर्ष में अपवर्तन किया और अवगाहमा (शरीर की ऊँचाई) को भी घटाकर १०० धनुष की कर दी।
देव उनको उठाकर वहाँ ले गया, और नागरिकों को सम्बोधित कर कहा - आप राजा के लिए चिन्तित क्यों हैं, मैं तुम्हारे पर करुणा कर राजा लाया हूँ । नागरिको ने हरि का राज्याभिषेक किया।
राजा हरि की जो सन्तान हुई वह हरिवंश के नाम से विश्रुत हुई । हरि के छह पुत्र थे - १-पृथ्वीपति २-महागिरि ३-हिमगिरि ४-वसुगिरि ५-नरगिरि ६-इन्द्रगिरि । अनेक राजाओं के पश्चात् बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत भी इसी वंश में
जैन हरिवंश पुराण के अनुसार यदुवंश का उद्भव हरिवंश से हुआ है। राजा यदु इक्कीसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ के समय हुए । ये हरिवंश रूपी उदयाचल में सूर्य के समान थे और इन्हीं से यादववंश की उत्पत्ति हुई थी । राजा यदु के नरपति नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। और नरपति के शूर और सुवीर दो पुत्र हुए । राजा नरपति ने इन दोनों को राज्य दिया । राजा शूर के अतिशय शूर अन्धक वृष्णि और सुवीर के अतिशय वीर भोजक वृष्णि पुत्र हुए । राजा अन्धक वृष्णि की पत्नी का नाम सुभदा था, और उससे -
१- हरिवंश पुराणं : खुशालचन्द काल (हिन्दी : हस्तलिखित)
खुशलचन्द ने हरिवंश की उत्पत्ति का वर्णन इस प्रकार किया है - नेमिनाथ फुनि अंतरै ।। केते काल वितीत । .
जह पिछे यादूरायसु ॥ हरिवंसी वरनीति ।।२१८ जिसौ यादव बंस को ॥ भयो बहुत विसतार ॥
ताके सुत नरपति भयो । सब जन को सुखकार ॥२१९ जदु जग सेती विरक तमयौ ॥ राज देय सुत ऊंवनिगयो । तपकरि सुरगयऊँ तो जाय ।। राजा नरपति राजकुमाय ॥
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118 . हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास