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चतुर्थ अध्याय वैदिक काल से आधुनिक काल तक वैष्णव साहित्य में कृष्ण के स्वस्प-विकास और हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण
के स्वरूप विकास से उसकी तुलना भूमिका :
आदिकाल से ही कृष्ण का भारतीय वाङ्मय और भारतीय जीवन से अविच्छिन्न सम्बन्ध रहा है । भारतीय साहित्य में कृष्ण का चरित्र इतना व्यापक और विविधतापूर्ण है कि वेदों से लेकर आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य तक वह विभिन्न भावों और स्वरूपों को लेकर विकसित हुआ है । वैदिक साहित्य में श्रीकृष्ण के जीवन को विस्तार से लिखा गया है। प्राचीन और मध्य युग के साहित्य में श्रीकृष्ण की लीलाओं का निरूपण है, उन्हें राधा
और गोपी-वल्लभ के रूप में चित्रित किया गया है । परन्तु जैन साहित्य में उनके उस रूप के दर्शन नहीं होते हैं । इसी प्रकार उनके जीवन से संबंधित घटनाओं का भी सभी साहित्य में शब्दों के हेर-फेर के साथ समान रूप से हुआ है । मध्यकालीन हिन्दी जैन साहित्य में उनके जीवन से संबंधित कुछ घटनाओं का वर्णन अलग रूप से हुआ है । प्रस्तुत अध्ययन में वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक कृष्ण के स्वरूप-विकास और हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण के स्वरूप-विकास से उसकी तुलना प्रस्तुत की है । वैदिक साहित्य में कृष्ण के वंश की उत्पत्ति तथा उसकी जैन साहित्य से तुलना व वैदिक कृष्ण कथा तथा जैन कृष्ण-कथा का साम्य-वैषम्य तथा वैदिक साहित्य के अवतारवाद की जैन साहित्य के उत्तारवाद से तुलना भी प्रस्तुत की है। (१) वैदिक तथा हिन्दी जैन साहित्य में वर्णित कृष्ण के वंश की उत्पत्ति :
वैदिक हरिवंश पुराण में महर्षि वेद व्यास ने श्रीकृष्ण को अरिष्टनेमि का चचेरा भाई माना है । उन्होनें यदुवंश का परिचय देते हुए लिखा है कि महाराजा यदु के सहस्रद, पयोद, क्रोष्टी, नील और अंजिक नाम के देवकुमारों के तुल्य पाँच पुत्र हुए । क्रोष्ट की मादी नामक द्वितीय रानी से युधाजित
और देवमीढुष नामक दो पुत्र हुए। क्रोष्ट के ज्येष्ठ पुत्र युधाजित के वृष्णि १- हरिवंश पर्व ।, अध्याय ३३, श्लोक १ । २- हरिवंश १/३४/१-२
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 115