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और अंधक नाम के दो पुत्र हुए । वृष्णि के भी दो पुत्र हुए, एक का नाम स्वफल्क और दूसरे का नाम चित्रक था ।'
स्वफल्क के अक्रूर नामक महादानी पुत्र हुआ । चित्रक के पृथु विपृथु, अश्वग्रीव, अश्वबाहु, सुपार्श्वक, गवेषण, अरिष्टनेमि, अश्व, सुधर्मा, धर्मभृत, सुबाहु, बहुबाहु नामक बारह पुत्र और श्रविष्ठा तथा श्रवणा नामक दो पुत्रियाँ हुईं । श्रीमद्भागवत में वृष्णि के दो पुत्रों का नाम स्वफल्क तथा चित्ररथ (चित्रक) दिया है । चित्ररथ (चित्रक) के पुत्रों का नामोल्लेख करते हुए "पृथुर्विपृथु धन्याद्याः" लिखा है, "पृथुर्विदूरथाद्याश्च" का उल्लेख कर केवल तीन और दो पुत्रों के नाम लिखकर आगे प्रभृति लिख दिया है ।
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हरिवंश में अरिष्टनेमि के वंशवर्णन के साथ ही श्रीकृष्ण का वंशवर्णन भी दिया है । यदु के क्रोष्ट, क्रोष्ट के द्वितीय पुत्र देवमीढुष के पुत्र शूर और उनके पुत्र वसुदेव प्रभृति दश पुत्र तथा पृथुकीर्ति आदि पाँच पुत्रियाँ हुईं । वसुदेव की देवकी नामक रानी से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ । ' क्रोष्ट के प्रथम पुत्र युधाजित के दो पुत्र हुए, वृष्ण और अन्धक । अन्धक के कोई सन्तान नहीं थी जबकि वृष्णि के दो पुत्र थे । स्वफल्क व चित्रक । अरिष्टनेमि चित्रक के पुत्र थे 1
जैन साहित्य में चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ वासुदेव, नौ प्रतिवासुदेव और नौ बलदेव - इन तिरसठ व्यक्तियों को श्लाधनीय और उत्तम पुरुष माना है । स्थानांग, समवायांग, आवश्यक नियुक्ति आदि में उन सभी के नाम, उनके माता-पिता के नाम, उनकी लम्बाई-चौड़ाई और आयुष्य के विषय में प्रकाश डाला है ।
१ - हरिवंश, १/३४ / ३ /
२- हरिवंश १/३४/१ ।
३- हरिवंश पर्व १, अध्याय १४, श्लोक १४ - १५ । ४- देवभागस्ततो जज्ञे, तथा देवश्रवा पुनः ।
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अनाधृष्टि कनवको, वत्सवानथ गूंजिमः ||२१|| श्यामः शमीको गण्डूषः पंच चास्य वरांगनाः ।
पृथुकीर्ति पृथा चैव श्रुत देवा श्रुतश्रवाः ||२२|| राजाधिदेवी च तथा, पंचैते वीरमातरः ||२३||
५- वसुदेवाच्च देवभ्यां, जज्ञे शौरि महायशाः ।
- हरिवंश, १/३४
- हरिवंश पुराणं, पर्व १, अध्याय ३५, श्लोक ७ ।
116 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप - विकास