SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तथा “पटरानी केस तणी, रुक्मिणी ने दे आदि । दीक्षा ली जिनराज की, तपस्या करे सुखादि । तथा- प्रद्युम्न, संबुकुमार अनिरुधौ प्रद्युम्न-सुत धीर । तीनों जाय दीक्षा ग्रही, जादव और सबे वीर वीर तौ ।। इसी प्रकार कवि सधारु ने अरिष्टनेमि के द्वारका आने पर कृष्ण का अपने दब-बल सहित उनकी सभा में उपस्थित होने का वर्णन इस प्रकार किया है। छप्पन कोटि जादव मन रले, नारायण स्यो हलघर चले। . समउसरण परमेसरु जहाँ, हलधर कान्ह पहुँचे वहाँ ॥२ . विभिन्न हिन्दी कवियों में लगभग इसी शब्दावली में अरिष्टनेमि के द्वारका आगमन, उनकी उपदेश-सभा में कृष्ण-बलराम तथा उनके परिवार जन सहित अनेक द्वारकावासियों का उपस्थित होना तथा उपदेशों से प्रभावित होकर उनमें से कुछ का वैराग्य की दीक्षा ले लेने का वर्णन हुआ है। इसी तथ्य-कथन की पुनरावृत्ति सभी कृतियों में प्रसंगानुसार हुई है । इससे अधिक वर्णन अथवा विवरण इन कृतियों में नहीं हुआ है । निष्कर्ष हिन्दी जैन साहित्य से संबंधित सर्व-साधारण और प्रास्ताविक तथ्यों का अध्ययन करने के उपरान्त हम निष्कर्षतः कह सकते हैं कि हिन्दी जैन साहित्य विविध विषयक और विविधमुखी रहा है । इस साहित्य की परम्परा रही है कि इसके विद्वान जिस युग में जो जनसाधारण की भाषा होती है, उसीमें वें अपना साहित्य रचते हैं । मुख्यतः १५ वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक जैन साहित्य के विद्वानों ने अपनी मुख्य रचनाएँ अपभ्रंश, प्राकृत तथा संस्कृत १-नेमिश्वर रासः नेमिचन्द्र छन्द सं० १९९८ एवं १२०० २-प्रद्युम्न चरितः सधारु : छन्द ६६५ हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास • 111
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy