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________________ तापर चक्र डारियो जामा, प. तीनों लोक कंपियो तामा ॥ . हरि को नमस्कार करि जानि । दाहिने हाथ चढ्यौ सो आनि ॥ ... तब नारायण छोड्यो सोइ । ___ मागध ट्रॅक रतन-सिर होई ।। यही कृष्ण का वासुदेव (नारायण) स्वरूप है। कवि देवेन्द्रकीर्ति के शब्दों में -- "तहाँ कृष्ण धारापति, भावी त्रिखण्ड नरेश । अमर भूप रसाधिपति, सब राजान विशेष ॥ राज्य वैभव भोगवि, यादव कुलाँ वर सूर । नागं शैय्या जिणि दलो, अरि करया बकचूर ॥२ ऐसे श्रेष्ठ राजा के राज्य में सब प्रकार से सुख और समृद्धि का प्रजाजन अनुभव करते हैं । अपने पाण्डव-यशोरसायन" महाकाव्य में मरुधरकेसरी मुनि श्री मिश्रीमल्लजी ने इन भावों को प्रकट करते हुए एक . सुन्दर सवैया लिखा है, जो इस प्रकार है - . “सबदेश किसे सुख संपति है अरु नेह बढ़े नित को सब में, वित, वाहक, साजन धर्म धुरी कुल जाति दिपावत है तब में, नहि झूठ लवार जुलाघत जोवत में व्यसनी शुभ भावन में, . मधुसूदन राज में सर्वसुखी इत-कित रु भीत लखी तब में ॥" कवि जयशेखर सरि ने भी अपने नेमिनाथ फागु में श्रेष्ठ नगरी द्वारका और वहाँ के महान वीर, जरासंधहन्ता वासुदेव राजा कृष्ण का वर्णन किया है । यथा - 'दीप' जिणि जिणमंदिर मंदर शिखर समान, दीसइँ दिसि दिसि हाटक हाट कहुँक विमान । धन दिहें सइँ हथि थापिय वापी अवर आराँमि । . . मणि कण धण सपूरिय पूरिय द्वारका नाँभि । Tom १-शालिवाहन : हरिवंश पुराण, १८/२२ २- देवेन्द्रकीर्ति : प्रद्युम्न प्रबन्ध, २३-२४ । ३- मिश्रीलाल : पाण्डव यशोरसायन, पृ. २८५ हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास • 109
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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