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________________ वर्णन करते समय इस बात का भी उल्लेख करते हैं कि शिशुपाल पर यह जो बाण छोड़ रहा है, वह नारायण (वासुदेव) है। इतना कहि जब कोपियों, .नारायण जब छोड्यो बाण तो। सिर छेदो शिशुपाल को, भाजि गया सब दल बल पाण तो ॥ शिशुपाल मार्यो पैणस्यो, रुक्मयो लियो जु बाँध । __ परणी राणी रुक्मणी, लगन मुहुरत साधि ॥" इस सारे सन्दर्भ में कृष्ण का अद्भुत पराक्रम व तेज प्रकट हुआ है । देवगण ने वासुदेव राजा कृष्ण की अर्चना की । जैन दिवाकर मुनि चौथमलजीने अपने काव्य-ग्रन्थ “भगवान नेमनाथ और पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण में इस तथ्य को निम्न शब्दों में अभिव्यक्त किया है - जरासंध और श्रीकृष्णने भारी युद्ध मचाया । शूरवीर भी दहल गए हैं, विद्याधर कंपाया ।" फिर तो जरासंध ने झुंझलाकर चक्ररत्न चलाया। यादव सुभट देख उस ताई, तुरत मुख कुम्हलाया ॥ * * * श्री श्रीकृष्ण ने उस चक्र को, ग्रहण किया कर भाई । सबके जी में जी आया, फिर सभी रहे हुलसाई ॥ देवगण कहें भरतक्षेत्र में, प्रगटे वासुदेव । गंधोदक और पुष्प वर्षाकर, कोनी देव न सेव ॥२ जरासंध-वध के कारण तीनों लोकों में कृष्ण का जयजयकार हुआ और उनका वासुदेव रूप में अभिनन्दन किया गया । इस घटना का वर्णन करते हुए कवि शालिवाहन ने लिखा है - तब मगध ता सन्मुख गयौ, ............... चक्र फिराई हाथ करि लयौ, । ... १- नेमिचन्द : नेमीश्वर रास (आमेर शास्त्र भण्डार प्रति)। २- चौथमल : भगवान नेमनाथ और पुरुषों त्तम श्रीकृष्ण-पद संख्या २४३, २४५, २४८ व २४९ । .. . 108 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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