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आधी ताहि वज्र मुंदडी, सोहइ रतन पदारथ जढ़ी ।
कोमल हाथ करइ चकचुरु, सो नारायणं गुण परिपुनु । पराक्रमी वासुदेव कृष्ण जब रुक्मिणी-हरण के पश्चात् अपना पाँचजन्य संख फेंकते हैं तो सारी पृथ्वी थर-थरा जाती है । सुमेरु पर्वत, कच्छप तथा शेषनाग, भी काँप उठते हैं । कवि शालिवाहन इस दृश्य का वर्णन करते हुए लिखते हैं - - लई रुक्मिणी रथ चढ़ाई,
पंचाहणं तव भूरिया । णि सुनि वयणु सब शैन कप्यौ,
महिमण्डल धर हौ । मेरु कमठ तथा शेष कंप्यो,
महली जाइ पुकारियो । पुहुमि राहु अवधारियो,
रुक्मिणी हरि ले गयो ॥२ . इस घटना से कुपित रुक्मिणी के पिता भीष्मक तथा रिक्मिणी के लिए निश्चित वर शिशुपाल दोनों की संमिलित वाहिनी कृष्ण पर आक्रमण करती है । इस भयंकर युद्ध में कृष्ण-बलराम का पराक्रम तथा कृष्ण द्वारा शिशुपाल-वध का वर्णन कवि निम्न शब्दों में करता है- सेशपाल अरु भीखम राउ,
पैदल मिल ण सूझे ठाँउ । छोरणि बूंदत उछली खेह,
जाणो गरजो भादों-मेह ।। शारंगपाणि धनक ले हाथ,
शशिपाल पठउ जम साथ ॥ हकि पचारि उठे दोऊ वीर,
बरसे बाण शयण धनणीर ॥३ नेमिश्वर रास' के रचयिता नेमिचन्द्र कृष्ण द्वारा शिशुपाल-वध का १- सघारु : प्रद्युम्न चरित्र (प्रकाशक-अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी, प्रका. समिति, जयपुर)
छन्द ५१-५३ । २- शालिवाहन : हरिवंश पुराण (अप्रकाशित-हस्तलिखित प्रति-आगरा) ५२/१९५७ ३- शालिवाहन : हरिवंश पुराण (अप्रकाशित, हस्तलिखित प्रति, आगरा) ५२/१९५७ ।
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 107