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प्रयत्न किया । कृष्ण ने गोकुल की रक्षा करने के लिए गोवद्धन पर्वत को ही इस भांति उठा लिया जैसे कि वीर योद्धा शत्रु-संहार हेतु अपना धनुष उठाता है - "देवा वन में जाय, मेघतनी वरषा करी । ..
. गोवर्द्धन गिरिराय, कृष्ण उठायो चाप सो ॥१ कवि नेमिचन्द्र ने इस घटना का वर्णन निम्न प्रकार किया है - 'केसो मन में चिन्तवे, परवत गोरधन लीयो उठाय ।
. चिंटी अँगुली उपरै, तलिउ या सब गोपी गाय ॥२
कवि खुशालचन्द्र ने अपने उत्तर पुराण" ग्रन्थ में हाथी छोडने से लेकर कंस-वध तक का वर्णन निम्न शब्दों में किया है - “जाके सम्मुख दौड्यो जाय । दंत उपरि लयो उमगाय ।
ताही दंत थकी गज मारि । हस्ति भागि चली पुर मझारि ।। ताही जीति शोभित हरि भए । कंस आप मल्ल मृति लखि लिए ।
रुधिर प्रवाह थकी विपरीति । देख क्रोध धरि करि तजि नीति ॥ आप मल्ल के आये सोच । तब हरि बैग अरि निज जाँच ।
चरण पकरि तब लिये उठाय । पाखि सनउन ताहि फिराय ॥ ' दोहा- “फेरि धरणि पटक्यो तणे, - कृष्ण कोप उपजाय । .
मानों यमराजा तणी,
सौ ले भेंट चढाय
३
कृष्ण द्वारा चाणूर-वध का वर्णन कवि शालिवाहन ने निम्न शब्दों में किया है -
चण्डूर मल्ल उठ्यो काल समान,
वज्रमुष्टि देयत समान ।
१- खुशालचन्द्र काला : हरिवंश पुराण १४/४७, प्रति उपलब्ध : दि. जैन मंदिर, लुणकरण
जी पाण्ड्या , जयपुर । २- नेमिश्वर रास : छन्द १८४, प्रति-आमेर शास्त्र भण्डार-जयपुर । ३- खुशालचन्द : उत्तर पुराण, पृ. १९९-२००।
हस्तलिखित प्रति-आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर। .
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 105