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परिपूर्ण व्यक्तित्व वाले उत्तम पुरुष थे । समवायांग सूत्र में उत्तम पुरुष वासुदेव के अद्वितीय स्वरूप का वर्णन निम्न शब्दों में किया गया है ।।
"ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी, यशस्वी, चमकीले शरीरवाले, सौम्य, सुभग, प्रिय-दर्शन, स्वरूपवान, सुन्दर स्वभाव वाले, सभी प्राणियों को प्रिय, स्वाभाविक बली, अत्यधिक बल-सम्पन्न, आहत न होने वाले, अपराजित, शत्रु का मर्दन करने वाले, दयालु, अमत्सर, अचपल, अक्रोध, परिमित व प्रिय संभाषण करने वाले, गम्भीर, मधुर व सत्यवचन बोलने वाले, शरणागत वत्सल, लक्षण, व्यंजन व गुणों से युक्त, मान-उपमान प्रमाण से पूर्ण, सर्वांग सुन्दर, चन्द्रमा के समान, प्रिय-दर्शन x x x x x महान धर्नुधारी, विशिष्ट बलधारक, दुर्धर धर्नधारी, धीर पुरुष, युद्ध में कीर्ति पाने वाले, उच्च कुलोत्पन्न, भयंकर युद्ध को भी विघटित कर सकने वाले आधे भरतक्षेत्र के स्वामी, सौम्य, राजवंश के तिलक, अजित तथा अजित रथी x x x xx
दीप्त तेजवाले प्रवीर पुरुष, नरसिंह, परपति, नरेन्द्र, नरवृषभ, देवराज इन्द्र के समान राज्यलक्ष्मी के तेज से दीप्त आदि-आदि ।
कालान्तर में हिन्दी भाषा में लिखित जैन काव्यकृतियों में भी कृष्ण की वीरता, पराक्रम तथा शक्तिशाली वासुदेव राजा के स्वरूप का विभिन्न प्रकार से वर्णन हुआ है। .. कृष्ण का अद्वितीय पराक्रम बाल्यावस्था से ही प्रकट होने लगा था । इस पराक्रम को प्रकट करने के लिए हिन्दी कवियों ने कंस द्वारा पूर्व जन्म में सिद्ध की हुई देवियों द्वारा, कंस की आज्ञा से कृष्ण की खोज कर, उन्हें मारने के प्रयत्नों का वर्णन किया है । इस वर्णन-क्रम में पूतना के पराभव तथा गोवर्धन धारण की घटना का जैन कवियों ने वर्णन किया है । पूतना वध जैन काव्य में नहीं दिखाया है । इसके स्थान पर पूतना का रोते-चिल्लाते हुए भाग जाने का वर्णन है । कवि नेमिचन्द्र के शब्दों में -
रूप कियो इक धाय को, आँचल दिया जाय ।
आँचल बैंच्या अति घणा, देवा पुकार भजि जाय ॥२ पूतना के इस प्रयत्न के बाद देवियों ने बालक कृष्ण को मारने के अन्य प्रयत्न भी किये पर वे सफल नहीं हो सकीं । अन्त में सबने मिलकर प्रलयकारी वर्षा द्वारा कृष्ण सहित समस्त गोकुल को ही नष्ट कर देने का १- समवायांग सूत्र २०७। २- नेमिचन्द्र % नेमिश्वररास : छन्द सं० १२० (हस्तलिखित प्रति उपलब्ध -
आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर ।
104 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास