SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आधे भरत-क्षेत्र पर प्रभुत्व हो । जैन-आगम ग्रन्थ समवायांग में वासुदेव का प्रमुख लक्षण आधे भरत-क्षेत्र का स्वामी होना (अर्द्ध भरह सामी) बताया गया है। अर्थात् द्वारावती नगरी में कृष्ण नाम के वासुदेव राजा थे जो उस नगरी का शासन करते हुए विचरते थे । अनेक अधीनस्थ राजाओं, ऐश्वर्यवान नागरिकों सहित वैताड़यागिरि (विन्ध्याचल) से सागर पर्यन्त दक्षिण भरत क्षेत्र उनके प्रभाव में था । कृष्ण अपने समय के वासुदेव शलाका पुरुष थे । इस रूप में वे महान शक्तिशाली अर्द्धचक्रवर्ती राजा थे । उनका द्वारका सहित संपूर्ण दक्षिण भरत क्षेत्र पर प्रभाव व प्रभुत्व था। जिनसेन कृत हरिवंश पुराण में कृष्ण के बालकाल की पराक्रमपूर्ण अनेक क्रीड़ाओं का वर्णन है । चाणूर मल्ल तथा कंस वध का वर्णन करते हुए कवि ने कृष्ण के पराक्रम का तथा अद्वितीय बल का निम्न शब्दों में वर्णन किया है - ___ "सिंह के समान शक्ति के धारक एवं मनोहर हुंकार से युक्त कृष्ण ने भी चाणूर मल्ल को जो उनसे शरीर में दूना था अपने वक्षस्थल से लगाकर भुजयन्त्र के द्वारा इतने जोर से दबाया कि उससे अत्यधिक रुधिर की धारा बहने लगी और वह निष्प्राण हो गया । कृष्ण और बलभद्र में एक हजार सिंह और हाथियों का बल था । इस प्रकार अखाड़े में जब उन्होंने दृढ़तापूर्वक कंस के दोनों प्रधान मल्लो को मार डाला तो उन्हें देख, कंस हाथ में पैनी तलवार लेकर उनकी ओर चला । उसके चलते ही समस्त अखाड़े का जनसमूह समुद्र की तरह जोरदार शब्द करता हुआ उठ खड़ा हुआ । कृष्ण ने सामने आते हुए शत्रु के हाथ से तलवार छीन ली और मजबूती से उसके बाल पकड़ उसे क्रोधवश पृथ्वी पर पटक दिया । तदनन्तर उसके कठोर पैरों को खींचकर उसके योग्य यही दण्ड है, यह सोचकर उसे पत्थर पर पछाड़ कर मार डाला । कंस को मारकर कृष्ण हँसने लगे । राजाओं में श्रेष्ठतम् व प्रथम सम्माननीय होने के लिए किसी राजपुरुष का अद्वितीय वीर, साहसी, पराक्रम-सम्पन्न, नीति-निपुण आदि गुणों से विभूषित होना अनिवार्य है । अतः जैनागमों के कृष्ण वासुदेव अनेक गुणों से १- समवायांग सूत्र २०७ २- हरिवंश पुराण : षठ तिशतम सर्ग ४३-४५, प्रका. भारतीय ज्ञानपीठ, काशी। हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास • 103
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy