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बाल-क्रीड़ाओं का तथा गोप-बालक कृष्ण के गोप-वेश का सामान्य - सा वर्णन करके कथाक्रम को आगे बढ़ा दिया है ।) कवि शालिवाहन ने अपने हरिवंशपुराण ग्रन्थ में कृष्ण की बाललीला का वर्णन करते हुए लिखा है । " आपुन खाई ग्वाल पर देई,
घर की क्षीर विराणी लेई ।
घर-घर बासण फोड़े जाई,
दूध-दहीं सब लेहि छिड़ाई ॥
पाण्डव यशोरसायन काव्य के रचयिता मुनि मिश्रीमल के गोप बालक कृष्ण के इस नटखट रूप का वर्णन द्रष्टव्य है
“दहीड़ो डाले दूध में, मांखण जल मांही रे ।
जल राले कभी छाछमें, मैं राख भराई रे // कौतुक दूध का कर रह्या, खेले अपने दावे रे ।
अधर बजावे बाँसूरी सब ही हँस जावे रे || पुरस्यो रे खावै नहीं, माता नजर चुरादे रे ।
छाने कोठा में घुसी, माखन गटकावे रे ॥२
कृष्ण के बाल - गोपाल स्वरूप का गोपियों पर प्रभाव बताते हुए कवि मिश्रीमलजी ने 'पाण्डव यशोरसायन में लिखा है
"मुकुट धर मोरनो, मुझ मन हर लीनो रे ।
कामणधरी कान्हड़ौ, मो पै जादू कीनो रे || ठुम ठुम चाल सुहावनी, अधियाली आँखडत्या रे । घुघरवाला केश है, जुल्फो बाकडत्या रे ।।"
ख) श्रीकृष्ण महान वीर एवं शक्ति - सम्पन्न शलाकापुरुष के रूपमें
कृष्ण एक अद्वितीय वीर तथा महान पुरुष थे । उन्होंने अपनी शक्तिबल से द्वारका में राज्य की स्थापना की तथा कालान्तर में भारतभूमि के अग्रणी राजपुरुष के रूप में प्रतिष्ठित हुए । उनका यह शक्तिशाली राजपुरुष का स्वरूप जैन - - परम्परा में शलाका पुरुष वासुदेव के रूप में मान्य है । जैन - परम्परा में वासुदेव से तात्पर्य है, वह शक्तिशाली राजा, जिसका
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१ - हरिवंशपुराण शालिवाहन छन्द ७०७-८
२ - पाण्डव यशोरसायन मुनि श्री मिश्रीमल, पृ० ११७ / ४७ /
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102 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप - विकास