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जीत लीन शिशुपाल नरेस । जरासंध जीतो चक्रेस ॥
इत्यादिक बहु कारण करे । सकल अनीति मार्ग तिन हरे ॥ ऐसा पराक्रमी, सामर्थ्यवान, तथा जरासंध जैसे चक्रधारी नरेश का हन्ता कृष्ण क्यों नहीं भारतभूमि के सभी राजाओं में श्रेष्ठ व पूजनीय होगा । कवि के अनुसार भारतभूमि के सभी नपतिगण उनके चरणों के सेवक थे तथा स्वयं देवगण उनकी आज्ञा का पालन करते थे । यथा - "सकल भूप सेवत तिन पाय ।।
देव करत आज्ञा मन भाय ॥ अपने समकालीन राज-समाज में पूजनीय पराक्रमी व वीर राजपुरुष कृष्ण का स्वरूप-वर्णन कृति में हुआ है। (३) हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प वर्णन
विभिन्न आयाम
श्रीकृष्ण शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक सभी प्रकार की सुषमाओं से सम्पन्न थे । वे निष्काम कर्मयोगी थे । उन्होंने अपने जीवन में सतत निष्काम कर्म को अपनाया और इसी की प्रेरणा दी। उन्होंने भाग्यवाद का निरसन कर पुरुषार्थवाद का महत्त्व स्थापित किया ।
हिन्दी जैन-साहित्य में श्रीकृष्ण के तीन स्वरूपों का वर्णन हुआ है
प्रथम श्रीकृष्ण का बालगोपाल रूप । द्वितीय एक अर्द्धचक्रवर्ती राजा के रूप में तथा तृतीय वे एक धर्म-निष्ठ आदर्श राजपुरुष के रूप में वर्णित हैं। (क) कृष्ण का बाल-गोपाल स्वरूप : ___आचार्य जिनसेन कृत संस्कृत हरिवंश पुराण (८ वीं शताब्दी ई०) में कृष्ण वासुदेव के परंपरागत स्वरूप वर्णन के साथ साथ उनकी बाल्यावस्था के वर्णन क्रम में उनके बाल-गोपाल रूप का वर्णन ध्यान देने योग्य है ।
___ आचार्य जिनसेन से पहले जैन साहित्य में श्रीकृष्ण की महत्ता दो स्वरूपों में ही प्रस्तुत मिलती है-एक शलाका पुरुष के रूप में, दूसरे आध्यात्मिक पुरुष के रूप में । आचार्य जिनसेन ने सर्व प्रथम शायद वैष्णव परम्परा से प्रभावित होकर श्रीकृष्ण के बाल-गोपाल स्वरूप का वर्णन अपने १- नेमिचन्द्रिकाः छन्द १९-२० । २- जिनसेनः- हरिवंश पुराण ३५/५५-५७/
100 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास