________________
(९) बलभद्र बेलि
बलभद्र बेलि के रचयिता कवि सालिग थे ।
प्रस्तुत बेलि २८ छन्दो की छोटी रचना है जिसमें द्वारका विनाश, कृष्ण का परमधामगमन तथा उनके अग्रज बलभद्रजी के अंतिम समय की घटनाओं का वर्णन हुआ है । कथावस्तु निम्न प्रकार से है
द्वीपायन मुनि के शाप से द्वारिका अग्नि में स्वाहा हो गई । कृष्ण-बलराम वहाँ से निकल कर कौशाम्बी बन-प्रदेश की ओर गए । मार्ग में कृष्ण को तीव्र प्यास लगी । वे एक वृक्ष की छाया में सो गए । बलभद्र जी. पानी लेने गए । तभी जराकुमार ने हरिण के धोखे में बाण चलाया जिससे कृष्ण का प्राणान्त हो गया ॥ पानी लेकर लौटने पर बलभद्र ने कृष्ण को मोहवश प्रगाढ़ निद्रा में निमग्न समझा और वे उनके मृत शरीर को कंधे पर लिए छः माह तक विचरण करते रहे । अन्त में देवताओं ने उन्हें प्रबोधन देने के लिए घाणी से रेत पीसकर तेल निकालने तथा पत्थर पर कमल पुष्प खिलाने का नाटक किया । इससे उनका मोह दूर हुआ तथा उन्होंने कृष्ण के मृत शरीर का दाह संस्कार किया । पश्चात् उन्होंने अर्हन्त अरिष्टनेमि के पास जाकर दीक्षा अंगीकार की । दीक्षित होकर संयमाराधना करते हुए मृत्यु को प्राप्त होकर वे पाँचवें देवलोक में गए । (१०) नेमिचन्द्रिकाः
"नेमिचन्द्रिका कवि मनरंगलाल की रचना है ।
कृष्ण वासुदेव के चरित्र-वर्णन में कवि ने उनकी वीरता, पराक्रम तथा श्रेष्ठ सामर्थ्य से युक्त एक नरेश के रूप का वर्णन किया है ।
वीर कृष्ण ने कालिय नाग का मर्दन किया । अत्याचारी कंस को मारकर उसके पिता उग्रसेन को सिंहासनासीन किया । शिशुपाल तथा शक्तिशाली जरासन्ध पर विजय प्राप्त की । इस प्रकार अपने कार्यों द्वारा अनीति के मार्ग को निरावृत किया । कृष्ण के इन कार्यों का उल्लेख करते हुए कवि ने लिखा है'नाग साधि करके मुरलीधर । सहस पत्र ल्याये इंदीवर ।।
• कंस नास कीन्हों छिन माँहि । उग्रसेन कहं राज्य करांहि ।।
१- समकित विण काज न सीझइ । सालिग कहइ सुधउ कीजइ । २- नेमिचन्द्रिका-मनरंगलाल पल्लीवाल-हस्तलिखित प्रति उपलब्ध दि० जैन मंदिर बड़ा
तेरापंथियों का, जयपुर । '
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 99