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आप मल्ल के आयो साय । रब हरि वेग अरि निज जोय ॥
चरण पकरि तब लयो उठाय । पंखी सन उत ताहि फिराय ॥ फेरि धरणि पटक्यो तर, कृष्ण कोप उपजाय ।
मानूं यम राजा तणी, सो ले भेंट चढ़ाय ॥ जरासंध के साथ हुए युद्ध में कृष्ण का यही पराक्रम अपने पूर्ण रूप में प्रकट हुआ है तथा पराक्रम के ऐसे अनेक वर्णन उपलब्ध हैं । (३) नेमिश्वर रासः- २
इसके रचयिता नेमिचन्द्र हैं । इसकी रचना ई० सन् १७१२/वि०संवत् १७६९ में हुई।
__ कृष्ण कृति के प्रमुख पात्र हैं । कृति के अधिकांश में उनके वीरतापूर्ण कृत्यों का वर्णन उपलब्ध है । इस वर्णन में वीर रस की सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है । यथा"कान्ह गयो जब चौक में, चाण्डूर आयौ तिहिं बार ।
पकड़ि पछाड्यो आवतौ, चाण्डूर पहुँच्यौ यम द्वार । कंस कोप करि उठ्यो, पहुंच्यौ जादुराय पै।
एक पलक में मारियो, जम-घरि पहुँच्यौ जाय तो ।। जै जै कार सबद हुआ, बाजा बाज्या सार ।
___ कंस मारि धीस्यौ तबै, पलक न ताइ बार ॥३ कृष्ण द्वारा गोवर्धन धारण की घटना का कवि ने निम्नानुसार उल्लेख । किया है। *केसो मन में चिन्तवे, परवत गोरधन लीयो उठाय ।
चिटी आंगुली उपरे, तलिउ या सब गोपी-गाय ॥४ कृति के अंतिम अंश में कृष्ण की धर्म विषयक रुचि तथा नेमिनाथ के प्रति श्रद्धाभाव का वर्णन हुआ है । कवि के शब्दों में“नमस्कार फिरि-फिरि किया, प्रश्न कियो तब केशोराय
__ भेद कह्यो सप्त तत्त्व को, धर्म-अधर्म कह्यो जिनराय ॥५ १- उत्तर पुराण – पृ० २००, छन्द ३-६ । २ हस्तलिखित प्रति विक्रम संवत १७९३ प्रतिलिपिकार पाण्डे दयाराम, उपलब्ध आमेर
शास्त्र भण्डार, जयपुर। ३- हस्तलिखित प्रति पद संख्या ७०-७३ । ४- वही, १८४ । ५- हस्तलिखित प्रति पद संख्या १११० ।
94 . हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास