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________________ गा० ] (३८) [ तैल पात्र धर-राधा वेधकर न होने से-इस प्रकार का शील का पालन करने में दूसरी आत्मा शक्ति नहीं रख सकती है। विशेषार्थ तैल पात्र धर को कथा, और राधावेध करने वाला की कथा प्रसिद्ध है॥१॥ राजा की आज्ञा का भंग करने वाला को देहान्स दंड की शिक्षा फरमाई गई, उससे बचने का मार्ग यह बतलाया गया, कि ''यदि तैल से पूरा भरा हुआ दो पात्र अश्वारूढ होकर, दोनो हाथ में लेकर, नगरभर में फिराने पर भी, एक बिन्दु भी, उसमें से न गिरे, तो तुम बच जायगा"। अपराधी ने यह मंजूर किया, और उसी तरह नगर में घूमने लगा। स्थल स्थल पर उतको स्खलित करने के लिए--मन को आकर्षित करने वाले अद्भुत अद्भुत नाटकादि दृश्य स्थापित किये गये । अन्त में पूछा गया कि-"नाटक कैसे थे ?" उसने कहा-"नाटकादिक क्या ? मैने तो कुछ भी देखा नहीं।' उसको छुटकारा दिया गया। यदि नाटकादि से आकर्षित हो जाता, तो एकाग्रता का भंग होने से-तैल का बिन्दु भी गिरे तो, मरण सामने था । उसे बचने के लिए कितनी एकाग्रता रखी गई होगी?। उसी तरह--अप्रमत्त भाव से साधक मुनि जीवन का रहस्य बताया गया है। ॥२॥''राधा पूत्तलो । उसका वेध-उसको आंखों में बाण लगाकर उसको बोध देना, उसका नाम राधा-वेध । उसको करने वाले को भी पूर्ण एकाग्र होना पड़ता है। क्योंकि-उस पुत्तली, उपर के एक शीघ्रगामी चक्र में फिरती रहती है। उसकी आंख भी चपला रहती है। नीचे-उकलता हुआ तेल का बड़ा भारी कटाह-कडाया रहता है। ऊपर तराजू और उस के दो छाबड़े रहते हैं। तराजू के दोनों छाबडे में दोनों पांव रखकर, तेल की कडाह में दृष्टि कर
SR No.002434
Book TitleStav Parigna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhudas Bechardas Parekh
PublisherShravak Bandhu
Publication Year1971
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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