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________________ गा० २५-२६-२७] (११) [श्री संघ-पूजा का अति महत्त्व (१२) श्री नमस्कार महामंत्र का स्मरण पूर्वक (१३) श्री जिन प्रतिमाजी की स्थापना करनी चाहिये, (१४) तथा शक्ति अनुसार और स्ववैभव के उचित श्री संघ की पूजा करनी चाहिये, क्योंकि-(दिगादि गत) विशिष्ठ पूजा से भी संध पूजा अधिक लाभकारी है। संघ की पूजा का विषय बहुत ही व्यापक है, इससे इसका महत्व बहुत ही है । शास्त्र में भी कहा गया है कि"श्री तीर्थ कर परमात्मा के बाद महत्त्व की वस्तु श्री संघ है।" इससे वह महान है। विशेषार्थ "व्याप्य से व्यापक का महत्त्व अधिक रहता है" (श्री तीर्थ कर प्रभु स्थापित श्री जैन शासन और श्री संघ व्यापक है, और सभी धर्म प्रवत्ति व्याप्य है यह रहस्य समझना चाहिये। सं०)॥ २३, २४, २५ ॥ * यही बात आगे कही जाती है, गुण-समुदाओ संघो. पवयण, तित्यं, ति होइ एग-हा. । तित्थ-यरो वि य एअं णमए गुरु-भावओ चेव. ! २६॥ "गुण का समुदाय को संघ कहा जाता है" क्योंकि-संघ के अनेक आत्माओं में सम्यग दर्शन आदि गुण भरे रहते हैं"प्रवचन, तीर्थ” इत्यादि श्री संघ के अनेक पर्याय शब्द है। श्री तीर्थकर परमात्मा भी धर्म कथा का प्रारंभ करने से पहले, गुरु भाव से ही "णमो तित्थस्स" "तीर्थको नमस्कार हो।" एसा कह कर, तीर्थ शब्द से श्री संघ को नमस्कार करते हैं। इस कारण से श्री संघ का बड़ा महत्व है ॥ २६ ॥ * इस विषय में दूसरा भो प्रमाण दिया जाता है, तप्पुब्धिया अरहया पूइय-पूआ य, विणय-कम्म्मं च । कय-किचो वि जह कहं कहेइ, णमए तहा तित्थं. ॥ २७॥
SR No.002434
Book TitleStav Parigna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhudas Bechardas Parekh
PublisherShravak Bandhu
Publication Year1971
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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