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गा० २३-२४-२५]
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[बिंब प्रतिष्ठा-विधि और समय समय पर जो मूल्य योग्य माना जाता हो, एवं उचित हो, वह मूल्य प्रतिमाजी का निर्माण करने का रुपये आदिक की संख्यादिक से ठहरा लेना चाहिये, जिससे अपने को भी ठगाना न हो, और कारीगर को
भी ठगना न चाहिये । ॥२२॥ * (७ प्रतिष्ठा-विधि)
णिफण्णस्स य सम्म तस्स पइट्ठावणे विही ऐसो, :स-हाणे सुह-जोगे अहि वासणमुचिय-पूआए. ॥ २३ ॥ चिह वंदण-थुइ-बुड्ढी, उस्सग्गो सासण-सूरीए, । थय सरण, पूआ काले, ठवणा मंगल-पुव्वा उ. ॥ २४ ॥ सत्तीए संघ-पूआ, घिसेस-पूआ उ बहु-गुणा एसा.
जं एस सुए भणिओ,:-"तित्थ-यराऽण-रो संघो." ॥२५॥ * सर्व गुण संपन्न प्रतिमाजी को बन जाने के बाद शुभ भाव पूर्वक प्रतिष्ठा कराने
को विधि यह है,(१) जहां वह (प्रतिमाजो) महाराज विराजमान हो वहां जाकर, . (२) (काल की अपेक्षा से) शुभ योग में, (३) स्ववैभव के अनुसार, (४) उचित पूजा पूर्वक अधिवासना करनी चाहिये ॥२३॥ बाद में__ अच्छी तरह से(५) चैत्यवंदना, (६) वृद्धि पूर्वक स्तुति (प्रथम छोटे वृत के श्लोक से, उत्तरोत्तर बड़े बड़े
वृत्त के श्लोक से स्तुति करनी चहिये) जाग्रती पूर्वक(७) शासन देवता का और (८) श्रुत ज्ञान देवता का कायोत्सग करना, (९) स्मरण पूर्वक चतुर्विशति जिन स्तव कहना, (१०) पुष्पादि से पूजा और (११) उचित समय में