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________________ [ जिन बिंब कराने का विधि गा० १९-९०-२१-२२ ( ९ ) " "ता, एअं मे वित्तं जद-त्थ विणिओगमेति अण - ऽवरयं. ” । इय चिन्ता - परिवडिया सा- [सु-आ]ssसय बुड्ढी उ मोक्ख फला. ॥ १९ ॥ ५. " इन कारणों से यह मेरा धन प्रशंसनीय है, कि जो सदा इस मंदिर के काम में लगता रहता है । " इस प्रकार की धारा प्रवाह बद्ध सतत चिन्ता, विचारणा, भावना उत्तम आशयों की वृद्धि रूप ही है । इसका फल मोक्ष है ही । । १९ ।। जिन मन्दिर बनवाने का संक्षिप्त विधि कहा गया । + (५ श्री जिन मंदिर बन जाने के बाद के कर्तव्य - ) . निष्फाइय जयणाए जिण-भवणं सुदर, तहिं बिंबं । fafe कारियमse विहिणा पट्ठविज्जा अ-संभंतो. ॥२०॥ "छाना हुआ पानी आदि का ही उपयोग करना" इत्यादि यतना पूर्वक सुंदर जिन मंदिर बनवाकर, उस मंदिर में - विधि पूर्वक बनवायी हुई श्री जिनेश्वर भगवंत के प्रतिमाजी को प्रतिष्ठा स्वस्थता से विधि पूर्वक करानी चाहिये ॥ २० ॥ + (६ श्री जिनेश्वर देव को प्रतिमाजी को कराने का विधि) जिण - बिंब-कारण-विही, :- काले संपूइऊण कत्तारं । विवोचिअ - मुल्लप्पणमण Sहस्स सुहेण भावेण ॥ २१ ॥ जिन प्रतिमाजी बनवाने का विधि, - १ बनाने वाले कारीगर को सुगंधि चूर्ण और चन्दनादि से शुभ मुहूर्त में पूजा करनी चाहिये, २ उस पवित्र कारीगर को शुभ भाव से और सन्मान पूर्वक स्व वैभव के अनुसार मूल्य को धन को अर्पण करना चाहिये ॥ २१ ॥ तारिसयस्सा-भावे तस्सेव हिप-इत्थमुज्जओ णवरं । for मेइ बिंब-मोल्लं जहोचियं कालमाSSसज्ज. ||२२|| ३ यदि ऐसा पवित्र कारीगर न मिले तो, दूसरे प्रकार के कारीगर की बाधाओं को विधि पूर्वक दूर कर, उसके हित में तत्पर रहना चाहिये ।
SR No.002434
Book TitleStav Parigna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhudas Bechardas Parekh
PublisherShravak Bandhu
Publication Year1971
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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