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________________ अनुस्सतिकम्मट्ठाननिद्देसो अट्ठमो परिच्छेदो मरणस्सतिकथा .. १. इदानि इतो अनन्तराय मरणस्सतिया भावनानिद्देसो अनुप्पत्तो। तत्थ मरणं ति। एकभवपरियापनस्स जीवितिन्द्रियस्य उपच्छेदो। यं पनेतं अरहन्तानं वट्टदुक्खसमुच्छेदसङ्घातं समुच्छेदमरणं२, सङ्घारानं खणभङ्गसङ्घातं खणिकमरणं, रुक्खो मतो लोहं मतं ति आदीसु सम्मुतिमरणं च, न तं इध अधिप्पेतं। २. यं पि चेतं अधिप्पेतं, तं कालमरणं अकालमरणं ति दुविधं होति । तत्थ कालमरणं पुञ्जक्खयेन वा आयुक्खयेन वा उभयक्खयेन वा होति। अकालमरणं कम्मुपच्छेदककम्मवसेन । ३. तत्थ यं विजमानाय पि आयुसन्तानजनकपच्चयसम्पत्तिया केवलं पटिसन्धिजनकस्स कम्मस्स विपक्कविपाकत्ता मरणं होति, इदं पुञक्खयेन मरणं नाम। यं गतिकालाहारादिसम्पत्तिया अभावेन अज्जतनकालपुरिसानं विय वस्ससतमत्तपरिमाणस्स आयुनो अनुस्मृतिकर्मस्थाननिर्देश अष्टम परिच्छेद ७. मरण-स्मृति १. अब इस (देवतानुस्मृति) के बाद मरण-स्मृति की भावना का प्रसङ्ग आता है। मरणं-एक भव (की सीमा) में समाविष्ट जीवितेन्द्रिय का उपच्छेद। किन्तु यह जो अर्हतों का (संसार-) चक्र के दुःखों का सर्वथा उच्छेद नामक समुच्छेदमरण है, या संस्कारों का क्षणभङ्ग नामक क्षणिक मरण है, और जो 'वृक्ष मर गया, लोहा मर गया', जैसे (कथनों) में संवृति(लोकव्यवहार में प्रयुक्त) मरण है-वह (सब) यहाँ अभिप्रेत नहीं है। २. जो मरण यहाँ अभिप्रेत है, वह द्विविध है-कालमरण, अकालमरण। कालमरण पुण्यक्षय या आयुःक्षय या दोनों के क्षय से होता है, अकालमरण (जीवन के उत्पादक) कर्म के उपच्छेदक कर्म से। ३. उनमें, जो आयु को बनाये रखने वाले कारणों के विद्यमान होते हुए भी केवल प्रतिसन्धिजनक कर्म का परिपाक होने से मरण होता है, उसे पुचक्खयेन मरणं (पुण्यक्षय से होने वाला मरण) कहा जाता है। जो मरण गति (देवताओं जैसी सुगति), काल या आहार आदि के अभाव से आजकल के पुरुषों के समान केवल सौ वर्ष की आयु के क्षय के कारण होता १. इतो ति। देवतानुस्सतिया। २. समुच्छेदमरणं ति। अरहतो सन्तानस्स सब्बसो उच्छेदभूतं मरणं। ३. रुक्खादि अल्लतादिविगमनं निस्साय मृतवोहारो सम्मुतिमरणं।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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