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________________ छअनुस्सतिनिद्देसो २९ मग्गफलेहि मज्झेकल्याणो, निब्बानेन परियोसानकल्याणो। सीलसमाधीहि वा आदिकल्याणो, विपस्सनामग्गेहि मज्झेकल्याणो, फलनिब्बानेहि परियोसानकल्याणो। बुद्धसुबोधिताय आदिकल्याणो, धम्मसुधम्मताय मज्झेकल्याणो, सङ्घसुप्पटिप्पत्तिया परियोसानकल्याणो। तं सुत्वा तथत्थाय पटिपन्नेन अधिगन्तब्बाय अभिसम्बोधिया' वा आदिकल्याणो, पच्चेकबोधियारे मज्झेकल्याणो, सावकबोधियारे परियोसानकल्याणो। सुय्यमानो चेस नीवरणविक्खम्भनतो सवनेन पि कल्याणमेव आवहती ति आदिकल्याणो, पटिपज्जियमानो समथविपस्सनासुखावहनतो पटिपत्तिया पि कल्याणं आवहती ति मज्झेकल्याणो, तथापटिपन्नो' च पटिपत्तिफले निट्टिते तादिभावावहनतो' पटिपत्तिफलेन पि कल्याणं आवहती ति परियोसानकल्याणो ति एवं आदि-मज्झ-परियोसानकल्याणत्ता स्वाक्खातो। यं पनेस भगवा धम्म देसेन्तो सासनब्रह्मचरियं मग्गब्रह्मचरियं च पकासेति, नानानयेहि दीपेति, तं यथानुरूपं अत्थसम्पत्तिया सात्थं, ब्यञ्जनसम्पत्तिया सब्यञ्जनं। सङ्कासन के अनुरूप होने और अर्थ के विपरीत न होने से एवं हेतु-दृष्टान्त से युक्त होने से मध्य में कल्याणकर तथा श्रोताओं में श्रद्धोत्पादक निष्कर्ष के रूप में अन्त में कल्याणकर है। समग्र शासन-धर्म (बुद्धवचन) ही, अपने उपकारक शील से आदि-कल्याणकर, शमथविपश्यना एवं मार्ग-फल से मध्य-कल्याणकर, फल (निर्वाण) से अन्त-कल्याणकर है। अथवा, जो उसे सुनकर उसमें प्रतिपन्न होता है, उसके द्वारा बुद्धज्ञान प्राप्त किये जाने से आदिकल्याणकर, प्रत्येकबुद्धज्ञान के रूप में मध्यकल्याणकर, तथा श्रावक-ज्ञान के रूप में अन्तकल्याणकर है। एवं क्योंकि इसे सुनने से नीवरण दब जाते हैं, अर्थात् सुनने से भी यह कल्याण की ओर ही ले जाता है, अत: आदिकल्याणकर है। प्रतिपन्न होने वाले के लिए शमथ और विपश्यना द्वारा सुख का वाहक है, प्रतिपत्ति से भी कल्याण की ओर ले आता है, अत: मध्य में कल्याणकर है। वैसे प्रतिपन में, प्रतिपत्तिफल पूर्ण होने पर, निर्लिप्तता ('तादिभाव'), जो कि षडङ्ग उपेक्षा द्वारा सम्भव होती है, लाने से प्रतिपत्ति-फल के रूप में भी कल्याण का वाहक है, अत: अन्त में कल्याणकर है। इस प्रकार आदि, मध्य और अन्त में कल्याणकर होने से स्वाख्यात है। ये भगवान् जिस धर्म की देशना करते हुए शासन ब्रह्मचर्य (शील, समाधि, प्रज्ञा) तथा मार्ग-ब्रह्मचर्य (अर्हत् मार्ग) का प्रकाशन करते हैं, अनेक प्रकार से समझाते हैं, वह यथानुरूप अर्थ से परिपूर्ण होने से अर्थसहित, तथा व्यञ्जने से परिपूर्ण होने से व्यञ्जनसहित है। १. अभिसम्बोधिया ति। सम्बुद्धजाणेन। २. पच्चेकबोधिया ति। पच्चेकबुद्धजाणेन। ३. सावकबोधिया ति। अरहत्तत्राणेन। ४. तथापटिपन्नो ति। यथा समथविपस्सनामुखं आवहति, यथा वा सत्थारा अनुसिटुं, तथा पटिपन्नो सासनधम्मो। ५. तादिभावावहनतो ति। छळपेक्खावसेन इट्ठादीसु तादिभावस्स लोकधम्मेहि अनुपलेपस्स आवहनतो। ६. अविसेसेन तिस्सो. सिक्खा, सकलो च तन्तिधम्मो-सासनब्रह्मचरियं। ७. सब्बसिक्खानं मण्डभूतसिक्खत्तयसङ्गहितो अरियमग्गो-मग्गब्रह्मचरियं।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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