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________________ विसुद्धिमग्गो पकासन-विवरण-विभजन - उत्तानीकरण-पञ्ञति-अत्थपदसमायोगतो' सात्थं, अक्खरपदब्यञ्जनाकारनिरुत्तिनिद्देससम्पत्तिया सब्यञ्जनं । अत्थगम्भीरता - पटिवेधगम्भीरताहि सात्थं, धम्मगम्भीरता-देसनागम्भीस्ताहि सब्यञ्जनं । अत्थपटिभानपटिसम्भिदाविसयतो सात्थं, धम्मनिरुत्तिपटिसम्भिदाविसयतो सब्यञ्जनं । पण्डितवेदनीयतों परिक्खकजनप्पसादकं ति सात्थं, सद्धेय्यतो लोकियजनप्पसादकं ति सब्यञ्जनं । गम्भीराधिप्पायतो सात्थं, उत्तानपदतो सब्यञ्जनं, उपनेतब्बस्स अभावतो सकलपरिपुण्णभावेन कॅवलपरिपुण्णं, अपनेतब्बस्स अभावतो निद्दोसभावेन परिसुद्धं । अपि च, पटिपत्तिया अधिगमब्यत्तितो २ सात्थं । परियत्तिया आगमब्यत्तितों‍ सब्यञ्जनं, सीलादिपञ्चधम्मक्खन्धयुत्ततो केवलपरिपुण्णं, निरुपक्किलेसतो नित्थरणताय पवत्तितो लोकामिसनिरपेक्खतो च परिसुद्धं ति एवं सात्थसब्यञ्जनकेवलपरिपुण्ण-परिसुद्धब्रह्मचरियप्पकासनतो स्वाक्खातो । अत्थविपल्लासाभावतो वा सुट्ठ अक्खातो ति स्वाक्खातो। यथा हि अञ्ञतित्थियानं ३० (अक्षरों द्वारा समझाने से) सङ्काशन, (पदों द्वारा) प्रकाशन, (व्यञ्जनों द्वारा ) विवरण, (प्रकारों द्वारा) विभाजन, (निरुक्तियों से) व्याख्या, (निर्देशों से) प्रज्ञप्ति तथा अर्थ और पद के समायोग के कारण अर्थसहित है। अक्षर, पद, व्यञ्जन, प्रकार, निरुक्ति तथा निर्देश से परिपूर्ण होने के कारण व्यञ्जनसहित है । अर्थ- गाम्भीर्य एवं प्रतिवेध (गहराई तक समझना) गाम्भीर्य के कारण अर्थसहित तथा धर्मदेशना - गाम्भीर्य के कारण व्यञ्जनसहित है । अर्थ- प्रतिमान और प्रतिसम्भिदा ( मीमांसापूर्ण ज्ञान) का विषय होने से अर्थसहित, धर्म की निरुक्ति एवं प्रतिसम्भिदा का विषय होने से व्यञ्जनसहित है। बुद्धिमानों द्वारा बोधगम्य होने से परीक्षकों को प्रसन्न करने वाला है, अतः अर्थसहित है। श्रद्धेय होने से जनसाधारण को प्रसन्न करने वाला है, अतः व्यञ्जनसहित है । गम्भीर अभिप्राय युक्त होने से अर्थसहित, पदों की स्पष्टता के कारण व्यञ्जनसहित है। इसमें कुछ और जोड़ने की आवश्यकता नहीं है, अतः सब प्रकार से परिपूर्ण है। इसलिये 'सर्वथा परिपूर्ण' है। इसमें से कुछ भी छोड़ने योग्य नहीं है, अतः निर्दोष (अत्याज्य) होने से परिशुद्ध है। साथ ही, प्रतिपत्ति का ज्ञान प्रकट (स्पष्ट) होने से अर्थसहित, पर्याप्ति (= धर्म) का आगमन स्पष्ट होने से व्यञ्जनसहित है। यह शील आदि पाँच धर्मस्कन्ध ( शील, समाधि, प्रज्ञा, विमुक्ति, विमुक्तिज्ञानदर्शन) से युक्त है, इसलिये सर्वथा परिपूर्ण है। क्लेशों से रहित, निःसरणहेतु प्रवर्तित तथा लोकामिष (लौकिक पदार्थों) के प्रति अपेक्षारहित होने से परिशुद्ध है । यों, अर्थ-व्यञ्जन सहित सर्वथा परिपूर्ण तथा परिशुद्ध ब्रह्मचर्य का प्रकाशन करने से स्वाख्यात है । अथवा अर्थ के वैपरीत्य ( विपर्यास) का अभाव होने से भलीभाँति कहा गया १. अक्खरेहि दीपनं सङ्कासनं । पदेहि पकासनं । व्यञ्जनेहि विवरणं । आकारेहि विभजनं । निरुत्तीहि उत्तानीकरणं । निद्देसेहि पञ्ञापनं पञ्ञत्ति । २. बोधस्स पाकटभावतो । ३. आगमानं पाकटभावतो । ४. सीलादीहि पञ्चहि धम्मकोट्ठासेहि अविरहितत्ता ।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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