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________________ छअनुस्सतिनिद्देसो चम्पानगरवासीनं धम्मं देसियमाने एको मण्डूको भगवतो सरे निमित्तं अग्गहेसि । तं एको वच्छपालको दण्डं ओलुब्भ तिट्ठन्तो सीसे सन्निरुम्भित्वा अट्टासि । सो तावदेव कालं कत्वा तावतिंसभवने द्वादसयोजनिके कनकविमाने निब्बत्ति । सुत्तप्पबुद्धो विय च तत्थ अच्छरासङ्घपरिवुतं अत्तानं दिस्वा" अरे, अहं पि नाम इध निब्बत्तो, किं नु खो कम्मं अकासिं" ति आवज्जेन्तो न अञ्जं किञ्चि अद्दस, अञ्ञत्र भगवतो सरे निमित्तग्गाहा। सो तावदेव सह विमानेन आगन्त्वा भगवतो पादे सिरसा वन्दि । भगवा जानन्तो व पुच्छि - " को मे वन्दति पादानि इद्धिया यससा जलं । अभिक्कन्तेन वण्णेन सब्बा ओभासयं दिसा" ति ॥ " मण्डूकोहं पूरे सं उदके वारिगोचरो । तव धम्मं सुणन्तस्स अवधी वच्छपालको" ति ॥ भगवा तस्स धम्मं देसेसि। चतुरासीतिया पाणसहस्सानं धम्माभिसमयो अहोसि । देवपुत्तो पि सोतापत्तिफले पतिट्ठाय सितं कत्वा पक्कमी ति । (खु०नि० २ / ७७) १३. यं पन किञ्चि अत्थि जेय्यं नाम सब्बस्सेव बुद्धत्ता विमोक्खन्तिकत्राणवसेन बुद्धो । यस्मा वा चत्तारि सच्चानि अत्तना पि बुज्झि, अञ्जे पि सत्ते बोधेसि, तस्मा एवमादीहि पि कारणेहि बुद्धो । इमस्स च पनत्थस्स विञ्ञापनत्थं "बुज्झिता सच्चानी ति बुद्धो । बोधेता २१ के निवासियों को धर्मोपदेश दे रहे थे, तब एक मण्डूक (= मेंढक ) ने भगवान् की वाणी में निमित्त ग्रहण किया। (उसी समय) एक ग्वाला, जो कि लाठी का सहारा लेकर खड़ा था, उसके सिर पर लाठी रख कर खड़ा हो गया। वह उसी समय प्राण त्याग कर त्रायस्त्रिंश भवन में बारह योजन (परिमाण) के स्वर्ण - विमान में उत्पन्न हुआ। जैसे (अभी ही) सोकर उठा हो, वैसा (अनुभव करते हुए) स्वयं को अप्सरासमूह से घिरा देखकर "अरे, मैं भी यहाँ उत्पन्न हो गया! मैंने कौन सा कर्म किया था ? " — इस प्रकार सोचते हुए ( वह) भगवान् की वाणी में निमित्त - ग्रहण के अतिरिक्त अन्य किसी भी कर्म को इसमें कारण नहीं समझ पाया । वह उसी समय विमान से आकर भगवान् को शिर से प्रणाम करने लगा । भगवान् ने (सर्वज्ञता के कारण ) जानते हुए भी (अन्यों के समक्ष दृष्टान्त उपस्थित करने के लिए) पूछा " ऋद्धि और यश से प्रज्वलित ( = अतिशय प्रकाशित) अत्यधिक सुन्दर वर्ण से सभी दिशाओं को अवभासित करता हुआ, कौन मेरी चरणवन्दना कर रहा है ?" "पहले मैं जल में (रहने वाला) एक मेंढक था। आपका धर्मश्रवण करते समय, (एक) ग्वाले ने मुझे मार डाला था ।" भगवान् ने उसको धर्मदेशना की। उस धर्मदेशना से चौरासी हजार अन्य प्राणियों को भी धर्म का ज्ञान (= धर्माभिसमय) हुआ । देवपुत्र भी स्रोत आपत्तिफल में प्रतिष्ठित होकर, मुस्कराकर चला गया। १३. जो कुछ भी ज्ञेय है, उस सबको जानने से, विमोक्षान्तिक ( = निर्वाण प्राप्त कराने वाले) ज्ञान के कारण, बुद्ध हैं। अथवा, क्योंकि चार (आर्य) सत्यों को स्वयं भी जाना, अन्य सत्त्वों को भी समझाया, अतः इन कारणों से भी बुद्ध हैं। इस (कथन के) अर्थ को स्पष्ट करने के लिये
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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