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________________ विसुद्धिमग्गो अथ वा अनुत्तरो पुरिसम्ममसारथी ति एकमेविदं अत्थपदं। भगवा हि तथा पुरिसदम्मे सारेति, यथा एकपल्लङ्केनेव निसिन्ना अट्ठ दिसा असज्जमाना 'धावन्ति। तस्मा अनुत्तरो पुरिसदम्मसारथी ति वुच्चति । "हत्थिदमकेन, भिक्खवे, हत्थिदम्मो सारितो एकं येव दिसं धावती" (म० नि० ३/१३२८) ति इदं चेत्थ सुत्तं वित्थारेतब्बं। ११. दिट्ठधम्मिकसम्परायिकपरमत्थेहि यथारहं अनुसासती ति सत्था।अपि च "सत्था विया ति सत्था, भगवा सत्थवाहो। यथा सत्थवाहो सत्थे कन्तारं तारेति, निरुदककन्तारं तारेति, उत्तारेति, नित्तारेति, पतारेति, खेमन्तभूमिं सम्पापेति, एवमेव भगवा सत्था सत्थवाहो सत्ते कन्तारं तारेति, जातिकन्तारं तारेती" (खु० नि० ४:१/३९१) ति आदिना निद्देसनोन पेत्थ अत्थो वेदितब्बो। १२. देवमनुस्सानं ति। देवानं च मनुस्सानं च। उक्कट्ठपरिच्छेदवसेन भब्बपुग्गलपरिच्छेदवसेन चेतं वुत्तं। भगवा पन तिरच्छानगतानं पि अनुसासनिप्पदानेन सत्था येव। ते पि हि भगवतो धम्मस्सवनेन उपनिस्सयसम्पत्तिं पत्वा ताय एव उपनिस्सयसम्पत्तिया दुतिये वा ततिये वा अत्तभावे मग्गफलभागिनो होन्ति। मण्डूकदेवपुत्तादयो चेत्थ निदस्सनं। भगवति किर गग्गराय' पोक्खरणिया तीरे अथवा, अनुत्तरपुरिसदम्मसारथि'-यह एक ही अर्थवाला पदसमूह है। क्योंकि इसका अर्थ है-वे दमनयोग्य पुरुषों को इस प्रकार चलाते हैं कि (वे पुरुष) एक आसन पर बैठे हुए ही आठ दिशाओं (आठ विमोक्ष-आठ समापत्तियों) में निर्बाध दौड़ते हैं; इसलिये अनुत्तरपुरिसदम्मसारथि कहे जाते हैं। (अर्थात् पुरुषों को विनीत करने में अनुत्तर हैं, अत: पुरिसदम्मसारथि कहे जाते हैं। इस अर्थ-योजना में अनुत्तर' शब्द को 'पुरिसदम्मसारथि' के साथ जोड़कर अर्थ लगाना चाहिये। ) एवं "भिक्षुओ, महावत द्वारा विनेय हाथी एक ही दिशा में दौड़ता है" (म० नि० ३/१३२८)-इस सूत्र का भी यहाँ सविस्तर उल्लेख करना चाहिये। ११. दृष्टधर्म, साम्परायिक धर्म (=परलोक) और परमार्थ (निर्वाण) के लिये यथायोग्य अनुशासन करते हैं, अतः सत्था (=शास्ता) हैं। और भी "भगवान् सार्थवाह हैं। जिस प्रकार सार्थवाह (नेता) सार्थ (=व्यापारिसमूह, काफिला) को जङ्गल पार कराता है, जलविहीन जङ्गल पार कराता है... सुरक्षित स्थान पर पहुँचाता है, उसी प्रकार भगवान् सत्था या सार्थवाह, सार्थ को जङ्गल पार कराते हैं, अर्थात् जाति (=जन्म) रूपी जङ्गल पार करते हैं" (खु० नि० ४:१/३९१)- इस प्रकार (महा) निद्देस की पद्धति से भी यहाँ अर्थ समझना चाहिये। .. १२. देवमनुस्सानं-देवों के और मनुष्यों में उत्कृष्टों और भव्य पुद्गलों को सूचित करने के लिये ही ऐसा कहा गया है। (अत: यहाँ शब्दश: अर्थ ग्रहण नहीं करना चाहिये; क्योंकि) भगवान् तो पशुयोनि में उत्पन्न जीवों का भी अनुशासन करने से शास्ता ही है, क्योंकि वे भी भगवान् का धर्मश्रवण करने से उपनिश्रय सम्पत्ति को पाकर, उसी उपनिश्रय सम्पत्ति से दूसरे या तीसरे जन्म में मार्गफल प्राप्त करते हैं। __ यहाँ मण्डूक देवपुत्र आदि दृष्टान्त हैं। जब भगवान् गर्गरा पुष्करिणी के किनारे चम्पानगर १. गग्गराया ति। गग्गराय नाम रजो देविया, ताय वा कारितत्ता 'गग्गरा" ति लद्धनामाय।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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