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________________ २२ विसुद्धिमग्गो पजाया ति बुद्धो" ति एवं पवत्तो सब्बो पि निद्देसनयो (खु० नि० ४:१/१६७) पटिसम्भिदानयो (खु० नि० ५/२०२) वा वित्थारेतब्बो।। १४. भगवा ति। इदं पनस्स गुणविसिट्ठसब्बसत्तुत्तमगरुगारवाधिवचनं। तेनाहु पोराणा भगवा ति वचनं सेढें भगवा ति वचनमुत्तमं । गरुगारवयुत्तो सो भगवा तेन वच्चती" ति॥ (१) चतुब्बिधं वा नाम-आवत्थिकं, लिङ्गिकं, नेमित्तिकं, अधिच्चसमुप्पन्नं ति। अधिच्चसमुष्पन्नं नाम लोकियवोहारेन यादिच्छकं ति वुत्तं होति । तत्थ वच्छो, दम्मो, बलीबद्दो ति एवमादि आवत्थिकं । दण्डी, छत्ती, सिखी, करी ति एवमादि लिङ्गिकं। तेविज्जो, छळभिज्ञो ति एवमादि नेमित्तिकं। सिरिवड्डको, धनवड्डको ति एवमादि वचनत्थं अनपेक्खित्वा पवत्तं अधिच्चसमुष्पन्न। इदं पन भगवा' ति नामं नेमित्तिकं । न महामायाय, न सुद्धोदनमहाराजेन, न असीतिया जातिसहस्सेहि कतं, न सक्कसन्तुसितादीहि देवताविसेसेहि। वुत्तं पि चेतं धम्मसेनापतिना"भगवा ति नेतं नामं मातरा कतं...पे०...विमोक्खन्तिकमेतं बुद्धानं भगवन्तानं बोधिया मूले सह सब्ब तत्राणस्स पटिलाभा सच्छिका पञत्ति यदिदं भगवा" (खु० ४:१/१७६) ति। " (उनके द्वारा) सत्य जान लिये गये, इसलिये बुद्ध हैं। सत्त्वों को ज्ञान करने से बुद्ध हैं"इस प्रकार प्राप्त निद्देस की समस्त पद्धति (खु० नि० ४:१/१६७) या यहाँ पटिसम्भिदामग्ग की पद्धति (खु० नि० ५/२०२) का विस्तारपूर्वक उल्लेख करना चाहिये। १४. भगवा-यह गुणों में विशिष्ट, सत्त्वों में उत्तम, अतिगौरवान्वित इन (बुद्ध) का अधिवचन है। इसीलिये पुराने विद्वनों ने कहा है "भगवान्' शब्द श्रेष्ठ है, 'भगवान्' शब्द उत्तम है, वे अतिगौरवान्वित हैं, अत: भगवान् कहे जाते हैं।" । अथवा, नाम चार प्रकार का होता है-(१) आवस्थिक, (२) लैङ्गिक, (३) नैमित्तिक और (४) अधीत्यसमुत्पन्न। लोकव्यवहार (के प्रयोजन) से इच्छानुसार रखा हुआ नाम अधीत्यसमुत्पन्न कहा जाता है। वत्स, विनेय, बलीवर्द (=जुए में बँधा बैल) आदि (एक ही प्राणी के जीवन की भिन्न भिन्न अवस्थाओं का सूचक होने से) आवस्थिक हैं। दण्डी, छत्री, शिखी, करी आदि (लक्षणसूचक होने से) लैङ्गिक हैं। विद्य, षडभिज्ञ आदि प्रकार के (नाम) नैमित्तिक हैं। श्रीवर्धक, धनवर्धक आदि प्रकार का, शब्दार्थ की अपेक्षा न करते हुए, रखा गया (नाम) अधीत्यसमुत्पन्न है। किन्तु बुद्ध का 'भगवान्' यह नाम नैमित्तिक है। यह न तो महामाया द्वारा, न शुद्धोदन महाराज द्वारा, न अस्सी हजार सगे सम्बन्धियों द्वारा, न शक्र (=इन्द्र), सन्तुषित आदि विशिष्ट देवों द्वारा रखा गया है। धर्मसेनापति सारिपुत्र ने यह कहा भी है-" 'भगवान्'-यह नाम माता द्वारा नहीं रखा गया ...पूर्ववत्... यह जो भगवान्' (नाम) है, वह विमोक्षसूचक है, बोधिवृक्ष के नीचे सर्वज्ञता प्राप्ति के साथ, बुद्ध भगवानों की सच्ची प्रज्ञप्ति है" (खु० नि० ४:१/१७६)। .
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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