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________________ छअनुस्सतिनिद्देसो ११ सच्चं, उभिन्न अप्पवत्ति निरोधसच्चं, निरोधपजानना पटिपदा मग्गसच्चं ति एवं एकेकपदद्धारेना पि सब्बधम्मे सम्मा सामं च बुद्धो। एस नयो सोत-घान-जिह्वा-काय-मनेसु। ___ एतेनेव नयेन रूपादीनि छ आयतनानि, चक्खुविज्ञाणादयो छ विज्ञाणकाया, चक्खुसम्फस्सादयो छ फस्सा, चक्खुसम्फस्सजादयो छ वेदना, रूपसादयो छ सञ्जा, रूपसञ्चेतनादयो छ चेतना, रूपतण्हादयो छ तण्हाकाया, रूपवितक्कादयो छ वितक्का, रूपविचारादयो छ विचारा, रूपक्खन्धादयो पञ्चक्खन्धा, दस कसिणानि, दस अनुस्सतियो, उद्धमातकसादिवसेन दस सा, केसादयो द्वत्तिंसाकारा, द्वादसायतनानि, अट्ठारस धातुयो, कामभवादयो नव भवा, पठमादीनि चत्तारि झानानि, मेत्ताभावनादयो चतस्सो अप्पमझा, चतस्सो अरूपसमापत्तियो, पटिलोमतो जरामरणादीनि, अनुलोमतो अविज्जादीनि पटिच्चसमुप्पादङ्गानि च योजेतब्बानि। तत्रायं एकपदयोजना-"जरामरणं दुक्खसच्चं, जाति समुदयसच्चं, उभिन्नं पि निस्सरणं निरोधसच्चं, निरोधपजानना पटिपदा मग्गसच्चं" ति। एवं एकेकपदुद्धारेन सब्बधम्मे सम्मा सामं च बुद्धो अनुबुद्धो पटिबुद्धो। तेन वुत्तं-"सम्मा सामं च सब्बधम्मानं बुद्धत्ता पन सम्मासम्बुद्धो" ति। ६. विजाहि पन चरणेन च सम्पन्नत्ता विजाचरणसम्पन्नो। तत्थ विजा ति तिस्सो पि विज्जा, अट्ठ पि विजा। तिस्सो विज्जा भयभेरवसुत्ते (म० नि० १/२८) वुत्तनयेनेव पहले से विद्यमान तृष्णा समुदयसत्य है, दोनों की अप्रवृत्ति निरोधसत्य है, निरोध को जानने का मार्ग मार्गसत्य है-इस प्रकार एक एक पद लेकर भी, सभी धर्मों को सम्यक् रूप से और स्वयं जानने वाला। श्रोत्र. घ्राण. जिहा. काय और मन के बारे में भी यही विधि है। इस विधि से रूप आदि छह आयतन, चक्षुर्विज्ञान आदि छह विज्ञानकाय, चक्षु-संस्पर्श आदि छह स्पर्श, चक्षु-संस्पर्शजन्य आदि छह वेदनाओं, रूपसंज्ञा आदि छह संज्ञाओं, रूपचेतना आदि छह चेतनाओं, रूपतृष्णा आदि छह तृष्णाकायों, रूप-वितर्क आदि छह वितर्को, रूप-विचार आदि छह विचारों, रूपस्कन्ध आदि पञ्चस्कन्धों, दस कसिणों, दस अनुस्मृतियों, उद्धुमातक संज्ञा आदि दस संज्ञाओं, केश आदि बत्तीस आकारों, बारह आयतनों, अट्ठारह धातुओं, कामभव आदि नव भवों, प्रथम आदि चार ध्यानों, मैत्री भावना आदि चार अप्रामाण्यों, चार अरूपसमापत्तियों, प्रतिलोम क्रम से जरामरण आदि और अनुलोमक्रम से अविद्या आदि प्रतीत्यसमुत्पाद के अङ्गों की भी योजना कर लेनी चाहिये। (उदाहरण के रूप में) एक पद की योजना इस प्रकार है-"जरामरण दुःखसत्य है, जाति समुदयसत्य है, दोनों से नि:सरण निरोधसत्य है, निरोध को जानना मार्गसत्य है। इस प्रकार एकएक पद को यदि लिया जाय तो सभी धर्मों को सम्यक् रूप से, स्वयं जानना, क्रमिक रूप से जानना, भलीभाँति जानना । इसलिये कहा गया है-"सभी धर्मों को सम्यक्रूप से और स्वयं जानने के कारण सम्यक्सम्बुद्ध हैं।" ६. विद्या और चरण से सम्पन्न होने से विजाचरणसम्पन्न हैं। विजा-विद्याएँ तीन भी हैं, आठ भी; तीन विद्याओं को भयभेरवसुत्त (म० १/२८) ।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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