SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छअनुस्सतिनिद्देसो तिण्णं । अरूपभवे एका वेदना अरूपभवे एकस्स तण्हाकायस्स पच्चयो होति । तत्थ तत्थ सा सा तण्हा तस्स तस्स उपादानस्स, उपादानादयो भवादीनं। कथं ? इधेकच्चो 'कामे परिभुञ्जिस्सामी' ति कामुपादानपच्चया कायेन दुच्चरितं चरति, वाचाय दुच्चरितं चरति, मनसा दुच्चरितं चरति, दुच्चरितपारिपूरिया अपाये उपपज्जति । तत्थस्स उपपत्तिहेतुभूतं कम्मं कम्मभवो, कम्मनिब्बत्ता खन्धा उपपत्तिभवो, खन्धानं निब्बत्ति जाति, परिपाको जरा, भेदो मरणं। ___ अपरो 'सग्गसम्पत्तिं अनुभविस्सामी' ति तथेव सुचरितं चरति, सुचरितपारिपूरिया सग्गे उप्पज्जति। तत्थस्स उपपत्तिहेतुभूतं कम्मं कम्मभवो ति सो एव नयो।। अपरो पन 'ब्रह्मलोकसम्पत्तिं अनुभविस्सामी' ति कामुपादानपच्चया एव मेत्तं भावेति, करुणं मुदितं उपेक्खं भावेति, भावनापारिपूरिया ब्रह्मलोके निब्बत्तति। तत्थस्स निब्बत्तिहेतुभूतं कम्मं कम्मभवो ति सो एव नयो। अपरो 'अरूपभवे सम्पत्तिं अनुभविस्सामी' ति तथेव आकासानञ्चायतनादिसमापत्तियो भावेति, भावानापारिपूरिया तत्थ तत्थ निब्बत्तति, तत्थस्स निब्बत्तिहेतुभूतं कम्मं कम्मभवो, कम्मनिब्बत्ता खन्धा उपपत्तिभवो, खन्धानं निब्बत्ति जाति, परिपाको जरा, भेदो मरणं ति। एस नयो सेसुपादानमूलिकासु पि योजनासु। तृष्णाओं का प्रत्यय होती हैं। रूपभव में तीन (वेदनाएँ) उनही तीन (तृष्णाकायों) का। अरूपभव में एक वेदना अरूपभव के एक तृष्णाकाय का प्रत्यय होता है। वहाँ वहाँ वह वह तृष्णा उस उस उपादान का, और उपादान आदि भव आदि के प्रत्यय हैं। कैसे? यहाँ कोई पुद्गल "कामों का भोग करूँगा" ऐसा (सोचकर) कामोपादान (=कामों में लिप्त रहना) के कारण कायिक दुराचार करता है, वाचिक दुराचार करता है, मानसिक दुराचार करता है। उसके फलस्वरूप वह अपाय (=नरक आदि) में उत्पन्न होता है। वहाँ उसकी उत्पत्ति का हेतुभूत कर्म कर्मभव, कर्म से उद्भूत स्कन्ध उत्पत्तिभव, स्कन्धों का उत्पाद जाति, उनका परिपाक जरा और उनका विनाश मरण है। अन्य (पुद्गल) "स्वर्ग-सम्पत्ति का अनुभव करूँगा" ऐसा (सोचकर) वैसे ही (कायिक आदि) सदाचार करता है। सदाचार के फलस्वरूप स्वर्ग में उत्पन्न होता है। वहाँ उसकी उत्पत्ति का हेतुभूत कर्म कर्मभव हैं-इस प्रकार वही विधि है। दूसरा पुद्गल "ब्रह्मलोक की सम्पत्ति का अनुभव करूँगा"-ऐसा (सोचकर) कामोपादान के कारण ही मैत्री की भावना करता है, करुणा, मुदिता, उपेक्षा की भावना करता है, भावना के फलस्वरूप ब्रह्मलोक में उत्पन्न होता है। वहाँ उसकी उत्पत्ति का हेतुभूत कर्म कर्मभव है-इस प्रकार वही विधि है। ___ कोई पुरुष-"अरूपभव में सम्पत्ति का अनुभव करूँगा" ऐसा (सोचकर) वैसी ही आकाशानन्त्यायतन आदि समापत्तियों की भावना करता है, भावना के फलस्वरूप वहाँ वहाँ उत्पन्न होता है। वहाँ उसकी उत्पत्ति का हेतुभूत कर्म कर्मभव, कर्म से उत्पन्न स्कन्ध उत्पत्तिभव, स्कन्धों की उत्पत्ति जाति, परिपाक जरा, भेद मरण है। 2-3
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy