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________________ विसुद्धिमग्गो अथ वा संसारचक्कं ति अनमतग्गं संसारवट्टं वुच्चति । तस्स च अविज्जा नाभि, मूलत्ता; जरामरणं' नेमि; परियोसानत्ता, सेसा दसधम्मा अरा अविज्जामूलकत्ता जरामरणपरियन्तत्ता च । तत्थ दुक्खादीसु' अञ्ञाणं अविज्जा । कामभवे च अविज्जा कामभवे सङ्घारानं पच्चयो होति। रूपभवे अविज्जा रूपभवे सङ्घारानं पच्चयो होति । अरूपभवे अविज्जा अरूपभवे सङ्ग्रारानं पच्चयो होति। कामभवे सङ्घारा कामभवे पटिसन्धिषिञ्ञाणस्स पच्चया होन्ति । एस नयो इतरेसु। कामभवे पटिसन्धिविज्ञाणं कामभवे नामरूपस्स पच्चयो होति । तथा रूपभवे । अरूपभवे नामस्सेव पच्चयो होति । कामभवे नामरूपं कामभवे सळायतनस्स पच्चयो होति । रूपभवे नामरूपं रूपभवे तिण्णं आयतनानं पच्चयो होति । अरूपभवे नामं अरूपभवे एकस्स आयतनस्स पच्चयो होति । कामभवे सळायतनं कामभवे छब्बिधस्स फस्सस्स पच्चयो होति रूपभवे तीणि आयतनानि रूपभवे तिण्णं फस्सानं पच्चया होन्ति । अरूपभवे एकं आयतनं अरूपभवे एकस्स फस्सस्स पच्चयो होति । कामभवे छ फस्सा कामभवे छन्नं वेदनानं पच्चया होन्ति । रूपभवे तयो फस्सा तत्थेव तिस्सन्नं । अरूपभवे एको तत्थेव एकिस्सा 'वेदनाय पच्चयो होति। कामभवे छ वेदना कामभवे छन्नं तण्हाकायानं पच्चया होन्ति । रूपभवे तिस्सो तत्थेव ६ चक्र है, उसके सभी अरों को इन ( भगवान् बुद्ध) ने बोधिमण्ड में वीर्यरूपी पैरों से शीलरूपी पृथ्वी पर स्थित होकर, श्रद्धारूपी हाथ से, कर्म का क्षय करने वाली ज्ञानरूप कुल्हाड़ी को पकड़ कर नष्ट कर दिया है, अतः अरानं हतत्ता पि अरहं कहा गया है। अथवा, ‘संसारचक्र' अनादि संसार - वृत्त ( = गोल) को कहा जाता है। (उस चक्र का ) मूल होने से, अविद्या उसकी नाभि है, पर्यवसान होने से जरामरण नेमि है, शेष दस धर्म अर हैं; क्योंकि उनका मूल अविद्या और पर्यवसान (अन्त) जरामरण है। इनमें, दुःख आदि (चार आर्यसत्यों) का अज्ञान अविदया है। कामभव में अविद्या कामभव के संस्कारों का प्रत्यय ( = कारण) होती है। रूपभव में अविद्या रूपभव के संस्कारों का प्रत्यय होती है। अरूपभव में अविद्या अरूपभव के संस्कारों का प्रत्यय होती है। कामभव में संस्कार कामभव में प्रतिसन्धिविज्ञान के प्रत्यय होते हैं। अन्यों में भी यही विधि है । कामभव में प्रतिसन्धिविज्ञान कामभव में नाम-रूप का प्रत्यय होता है। वैसे ही रूपभव में भी । अरूपभव में केवल नाम का ही प्रत्यय होता है। कामभव में नामरूप का, कामभव में षडायतन का प्रत्यय होता है । रूपभव में नामरूप, तीन आयतनों (चक्षु, श्रोत्र, मन ) का प्रत्यय होता है। अरूपभव में नामरूप, अरूपभव एक आयतन का प्रत्यय होता है। कामभव में षडायतन कामभव के षड्विध स्पर्शो का प्रत्यय होता है । रूपभव में तीन आयतन रूपभव के तीन स्पर्शो के प्रत्यय होते हैं। अरूपभव में एक आयतन अरूपभव के एक स्पर्श का प्रत्यय होता है। कामभव में छह स्पर्श कामभव में छह वेदनाओं के प्रत्यय होते हैं। रूपभव में तीन स्पर्श वहीं तीन (वेदनाओं) के; अरूपभव का एक (स्पर्श) वहीं एक वेदना का प्रत्यय होता है। कामभव में छह वेदनाएँ कामभव की छह १. तत्थ तत्थ भवे परियन्तभावेन पाकटं जरामरणं नेमिट्ठानियं । २. दुक्खादीसू ति । दुक्खसमुदयनिरोधमग्गेसु । ३. तिण्णं आयतनानं ति । चक्खु -सोत-मनायतनानं । -
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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