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________________ छअनुस्पतिनिद्देसो ४. तत्थ आरकत्ता, अरीनं अरानं च हतत्ता, पच्चयादीनं अरहत्ता, पापकरणे रहाभावा ति इमेहि ताव कारणेहि सो भगवा अरहं ति अनुसरति । आरका हि सो सब्बकिलेसेहि सुविदूरविदूरे ठितो मग्गेन सवासनानं किलेसानं विद्धंसितत्ता ति आरकत्ता अरहं । सो ततो आरका नाम यस्स येनासमङ्गिता । असमङ्गी च दोसेहि नाथो तेनारहं मतो ति ॥ तेच अनेन किलेसारयो मग्गेन हता ति अरीनं हतत्ता पि अरहं । यस्मा रागादिसङ्घाता सब्बे पि अरयो हता । पञ्ञसत्थेन नाथेन तस्मा पि अरहं मतो ति ॥ ५ यं चेतं अविज्जाभवतण्हामयनाभि पुञ्ञादिअभिसङ्घारारं जरामरणनेमि आसवसमुदयमयेन अक्खेन विज्झित्वा तिभवरथे समायोजितं अनादिकालप्पवत्तं संसारचक्कं, तस्सानेन बोधिमण्डे विरियपादेहि सीलपथवियं पतिट्ठाय सद्धाहत्थेन कम्मक्खयकरं जाणफरसुं गत्वा सब्बे अरा हता ति अरानं हतत्ता पि अरहं । ३: यहाँ, अनुस्मरण की विधि यह है - " वे भगवान् ऐसे हैं, इसलिये सम्यक्सम्बुद्ध हैं। .. पूर्ववत्... ऐसे हैं, इसलिये भगवान् हैं" - इस प्रकार (योगी) अनुस्मरण करता है । अर्थात् इस इस कारण से । ४. दूर होने से, अरियों और (संसार-चक्र के ) अरों (= चक्के की तीलियों) का नाश करने से, प्रत्यय आदि के योग्य होने से, पाप करने में रहस्य (एकान्त) का अभाव होने से - इन कारणों से ये भगवान् अर्हत् हैं, ऐसे अनुस्मरण करता है । वे सभी क्लेशों से दूर, बहुत दूर खड़े हैं; क्योंकि उन्होंने (आर्य ) मार्ग द्वारा वासनासहित क्लेशों का विध्वंस कर दिया है। इस प्रकार दूर होने से 'अरहं' (= अर्हत्) है। कहा भी है जो जिससे युक्त नहीं है, वह उससे दूर है। नाथ ( = बुद्ध) दोषों से युक्त नहीं हैं, अतः वे अर्हत् माने जाते हैं ॥ एवं इस मार्ग से उन के द्वारा क्लेश रूपी अरि मार डाले गये, अतः -अरीनं हतत्ता पि अहं । कहा गया है। क्योंकि राग आदि कहे जाने वाले सभी (क्लेश रूपी) अरि (शत्रु) नाथ (बुद्ध) द्वारा प्रज्ञा रूपी शस्त्र से मार डाले गये, इसीलिए भी वे अर्हत् माने जाते हैं ॥ और यह जो अविद्या, भव, तृष्णा से निर्मित नाभि वाला, पुण्य आदि अभिसंस्कार रूपी अरों वाला, जरामरण रूपी नेमि वाला तथा आस्रवसमूह से निर्मित अक्ष (= धुरी) से छिदा हुआ, तीन भव (काम, रूप और अरूप) रूपी रथ में जुड़ा हुआ, अनादिकाल से चलता आ रहा संसार १. आरका ति । एत्थ आ-कारस्स रस्सत्तं, क-कारस्स च ह-कारं सानुसारं कृत्वा निरुत्तिनयेन "अरहं" ति पदसिद्धि । २. समञ्जनसीलो समङ्गी, न समङ्गिता असमङ्गिता = असमन्नागमो, असहवृत्तिता ।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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