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________________ विसुद्धिमग्गो देवता आरब्भ उप्पन्ना अनुस्सति देवतानुस्सति। देवता सक्खिट्ठाने ठपेत्वा अत्तनो सद्धादिगुणारम्मणाय सतिया एतं अधिवचन। (७) मरणं आरब्भ उप्पन्ना अनुस्सति मरणानुसति। जीवितिन्द्रियुपच्छेदारम्मणाय सतिया एतं अधिवचनं । (८) केसादिभेदं रूपकायं गता, काये वा गता ति कायगता। कायगता च सा सति चा ति 'कायगतसती' ति वत्तब्बे रस्सं अकत्वा कायगतासती ति वुत्ता। केसादिकायकोट्ठासनिमित्तारम्मणाय सतिया एतं अधिवचनं। (९) आनापाने आरब्भ उप्पन्ना सति आनापानस्सति। अस्मासपस्सासनिमित्तारम्मणाय सतिया एतं अधिवचन। (१०) उपसमं आरब्भ उप्पन्ना अनुस्सति उपसमानुस्सति। सब्बदुक्खूपसमारम्मणाय सतिया एतं अधिवचनं । १. बुद्धानुस्सतिकथा २. इति इमासु दससु अनुस्सतिसु बुद्धानुस्सतिं ताव भावेतुकामेन अवेच्चप्पसादसमन्नागतेन योगिना पटिरूपे सेनासने रहोगतेन पटिसल्लीनेन "इति पि सो भगवा अरहं. सम्मासम्बुद्धो विजाचरणसम्पन्नो सुगतो लोकविदू अनुत्तरो पुरिसदम्मसारथि सत्था देवमनुस्सानं बुद्धो भगवा" (अं० नि०७-१०) ति एवं बुद्धस्स भगवतो गुणा अनुस्सरितब्बा। ३. तत्रायं अनुस्सरणनयो-सो भगवा इति पि, अरहं इति पि सम्मासम्बुद्धो... पे०...इति पि, भगवा इति पि ति अनुस्सरति । इमिना च इमिना च कारणेना ति वुत्तं होति। (६) देवता के प्रति उत्पन्न अनुस्मृति देवतानुस्सति है। देवता को साक्षी समझते हुए, श्रद्धा आदि स्वकीय गुणों को आलम्बन बनाने वाली स्मृति का यह अधिवचन है। (७) मरण के प्रति उत्पन्न अनुस्मृति मरणानुस्सति है। जीवितेन्द्रिय-उपच्छेद (मृत्यु) को आलम्बन बनाने वाली स्मृति का यह अधिवचन है। (८) केश आदि भेद वाली रूपकाय में गयी हुई है, या काया में गयी हुई है, अत: कायगता है। यह कायगता है और स्मृति है, अत: 'कायगतस्मृति' (इस प्रकार भी संक्षेप में किया जा सकता था किन्तु) इस प्रकार संक्षेप न करके कायगतासति कही गयी है। केश आदि काय के अवयव रूपी निमित्त को आलम्बन बनाने वाली स्मृति का यह अधिवचन है। (९) आनापान (=श्वास प्रश्वास) के प्रति उत्पन्न स्मृति आनापानस्सति है। श्वास-प्रश्वासनिमित्त को आलम्बन बनाने वाली स्मृति का यह अधिवचन है। (१०) उपशम के प्रति उत्पन्न अनुस्मृति उपसमानुस्सति है। सर्व दुःखों के उपशम को आलम्बन बनाने वाली स्मृति का यह अधिवचन है। १. बुद्धानुस्मृति २. इस प्रकार इन दश अनुस्मृतियों में, बुद्धानुस्मृति की भावना करने के अभिलाषी, पूर्ण विश्वास से युक्त योगी को अपने शयनासन में एकान्त में बैठकर, भगवान् बुद्ध के गुणों का इस प्रकार अनुस्मरण करना चाहिये-"भगवान् ऐसे हैं, इसलिये अर्हत्, सम्यक्सम्बुद्ध, विद्या और चरण से सम्पन्न, सुगत, लोकविद्, विनेय (=दम्य) पुरुषों के अनुपम सारथि (=नायक), देवताओं और मनुष्यों के शास्ता, बुद्ध भगवान् हैं।"
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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