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________________ इद्धिविधनिद्देसो २७५ वारियमानो पि सीसे पहारं अदासि । यस्स मेघस्स विय गज्जतो सद्दो अहोसि। तथा थेरो तस्स पहरणसमये समापत्तिं अप्पेसि। अथस्स तेन पहारेन न कोचि आबाधो अहोसि। अयं तस्सायस्मतो समाधिविप्फारा इद्धि । वत्थु पन उदाने (खु० नि० १/१०८) आगतमेव। (क) सञ्जीवत्थेरं पन निरोधसमापन्नं कालङ्कतो ति सल्लक्खेत्वा गोपालकादयो तिणकट्ठगोमयानि सङ्कड्ढेत्वा अग्गि अदंसु। थेरस्स चीवरे अंसुमत्तं पि न झायित्थ। अयमस्स अनुपुब्बसमापत्तिवसेन पवत्तसमथानुभावनिब्बत्तत्ता समाधिविप्फारा इद्धि । वत्थु पन सुत्ते (म० नि० १/४०७) आगतमेव। (ख) खाणुकोण्डञ्जत्थेरो पन पकतिया व समापत्तिबहुलो। सो अज्ञतरस्मि अरञ्जु रत्तिं समापत्तिं अप्पेत्वा निसीदि। पञ्चसता चोरा भण्डकं थेनेत्वा गच्छन्ता 'इदानि अम्हाकं अनुपथं आगच्छन्ता नत्थी" ति विस्समितुकामा भण्डकं आरोपयमाना "खाणुको अयं" ति मञ्जमाना थेरस्सेव उपरि सब्बभण्डकानि ठपेसुं। तेसं विस्समित्वा गच्छन्तानं पठमं ठपितभण्डकस्स गहणकाले कालपरिच्छेदवसेन थेरो वुट्ठासि। ते थेरस्स चलनाकारं दिस्वा भीता विरविंसु। थेरो-"मा भायित्थ, उपासका, भिक्खु अहं" ति आह। आगन्त्वा वन्दित्वा थेरगतेन पसादेन पब्बजित्वा सह पटिसम्भिदाहि अरहत्तं पापुणिंसु। अयमेत्थ पञ्चहि भण्डकसतेहि अज्झोत्थटस्स थेरस्स आबाधाभावो समाधिविप्फारा इद्धि। (ग) ‘उत्तरा पन उपासिका पुण्णकसेट्ठिस्स धीता। तस्सा सिरिमा नाम गणिका इस्सापकता थे, उस समय एक दुष्ट यक्ष ने अपनी साथी यक्ष द्वारा निषिद्ध किये जाने पर भी (स्थविर के) सिर पर प्रहार कर दिया, जिससे मेघगर्जन के समान शब्द हुआ। जब उसने प्रहार किया, स्थविर समापन हो चुके थे; अतः उसके प्रहार से उन्हें कोई हानि नहीं हुई। यह उन आयुष्मान् की समाधिविस्तार ऋद्धि थी। कथा तो उदान (खु० १/१०८) में आयी ही है। (क) स्थविर सञ्जीव जिस समय निरोधसमापत्ति में (लीन) थे, उन्हें दिवङ्गत समझकर ग्वाला आदि ने घास-फूस, लकड़ी, उपला एकत्र कर आग लगा दी। स्थविर का चीवर रञ्चमात्र भी नहीं जला। पूर्व समापत्ति के बल से प्रवृत्त शमथ के प्रभाव से उत्पन्न यह उनकी समाधिविस्तारऋद्धि थी। कथा तो सूत्र (म० १/४०७) में आयी ही है। (ख) स्थविर स्थाणुकौण्डिन्य स्वभावतः ही समापत्ति-बहुल थे। वह किसी वन में रात्रि के समय समाधिस्थ होकर बैठे थे। पाँच सौ चोरों ने, जो सामान चुराकर जा रहे थे, 'इस समय हमारा पीछा कोई नहीं कर रहा है-यह सोचकर विश्राम की इच्छा से सामान उतार कर 'यह स्थाणु (लकड़ी का कुन्दा) है-ऐसा सोचकर स्थविर के ऊपर ही सब सामान रख दिया। विश्राम के पश्चात् चलते समय ज्यों ही उन्होंने पहले रखा गया सामान उठाया, (समापत्ति से उठने का) समय हो जाने से स्थविर उठ गये। वे (चोर) स्थविर को हिलता-डुलता देखकर डर गये। स्थविर ने कहा-"मत डरो, उपासको! मैं भिक्षु हूँ।" (तब चोरों ने) आकर वन्दना की एवं स्थविर (की ऋद्धि को देखकर उन) पर प्रसाद (श्रद्धा) होने से उनसे प्रव्रज्या ग्रहण की एवं प्रतिसंविदाओं १. एक के ऊपर एक सामान रखा जाने से सर्वप्रथम रखे सामान को उठाने की बारी सबसे अन्त में आती
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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