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________________ २६६ विसुद्धिमग्गो पठमज्झानतो पन पट्ठाय पटिपाटिया याव नेवसञ्जानासायतनं ताव पुनप्पुनं समापज्जनं झानानुलोमं नाम। नेवसञानासज्ञायतनतो पट्ठाय याव पठमज्झानं ताव पुनप्पुनं समापजनं झानपटिलोमं नाम। पठमज्झानतो पट्ठाय याव नेवसज्ञानासचायतनं, नेवसानासज्ञायतनतो पट्ठाय च याव पठमज्झानं ति एवं अनुलोमपटिलोमवसेन पुनप्पुनं समापज्जन झानानुलोमपटिलोमं नाम। (४-६) पठवीकसिणे पन पठमं झानं समापज्जित्वा तत्थेव ततियं समापज्जति, ततो तदेव उग्घाटेत्वा आकासानञ्चायतनं, ततो आकिञ्चञायतनं ति एवं कसिणं अनुक्कमित्वा झानस्सेव एकन्तरिकभावेन उक्कमनं झानुक्कन्तिकं नाम। एवं आपोकसिणादिमूलिका पि योजना कातब्बा। पठवीकसिणे पठमं झानं समापज्जित्वा पुन तदेव तेजोकसिणे, ततो नीलकसिणे, ततो लोहितकसिणे ति इमिना नयेन झानं अनुक्कमित्वा कसिणस्सेव एकन्तरिकभावेन उक्कमनं कसिणुक्कन्तिकं नाम। पठवीकसिणे पठमं झानं समापज्जित्वा ततो तेजोकसिणे ततियं, नीलकसिणं उग्घाटेत्वा आकासानञ्चायतनं, लोहितकसिणतो आकिञ्चायतनं ति इमिना नयेन झानस्स चेव कसिणस्स च उक्कमनं झानकसिणुक्कन्तिकं नाम (७-९) पठवीकसिणे पन पठमं झानं समापज्जित्वा तत्थेव इतरेसं पि समापज्जनं अङ्गसङ्कन्तिकं नाम। पठवीकसिणे पठमं झानं समापजित्वा तदेव आपोकसिणे...पे०...तदेव ओदातकसिणे ति एवं सब्बकसिणेसु एकस्सेव झानस्स समापज्जनं आरम्मणसङ्कन्तिकं नाम। पठवीकसिणे प्रथम ध्यान से लेकर क्रमशः नैवसंज्ञानासंज्ञायतन तक बार बार समाहित होना ध्यानानुलोम है। नैवसंज्ञानासंज्ञायतन से लेकर प्रथम ध्यान तक बारंबार समाहित होना ध्यान-प्रतिलोम है। प्रथम ध्यान से नैवसंज्ञानासंज्ञायतन तक, पुन: नैवसंज्ञानासंज्ञायतन से लेकर प्रथम ध्यान तक यों अनुलोमप्रतिलोम (क्रम) से बारंबार समाहित होना ध्यानानुलोम-प्रतिलोम है। (४-६) पृथ्वीकसिण में प्रथम ध्यान प्राप्त कर, उसी में तृतीय प्राप्त करता है। तत्पश्चात् (कसिण को) मिटाकर आकाशानन्त्यायतन तत्पश्चात् आकिञ्चन्यायतन (ध्यान प्राप्त करता है)। यों कसिणों के क्रम का अनुसरण करते हुए, केवल ध्यान का ही एक के बाद एक का अतिक्रमण करना 'ध्यानातिक्रमण' कहलाता है। आपोकसिण आदि के बारे में भी इसी प्रकार योजना करनी चाहिये। पृथ्वीकसिण में प्रथम ध्यान प्राप्त कर, पुनः उसी को तेजःकसिण में पुनः नीलकसिण में, पुनः लोहितकसिण में इस विधि से ध्यान में परिवर्तन न करते हुए, एक एक कर केवल कसिण का ही अतिक्रमण कसिणातिक्रमण कहलाता है। पृथ्वीकसिण में प्रथम ध्यान प्राप्त करने के पश्चात तेज:कसिण में तृतीय, नीलकसिण को मिटाकर आकाशानन्त्यायतन. लोहितकसिण से आकिञ्चन्यायतन-इस विधि से ध्यान एवं कसिणों का भी अतिक्रमण ध्यानकसिणातिक्रमण कहलाता है। (७-९)। पृथ्वीकसिण में प्रथम ध्यान प्राप्त कर, उसी में अन्य (ध्यान) की भी प्राप्ति 'अङ्गसमतिक्रमण' कही जाती है। पृथ्वीकसिण में प्रथम ध्यान प्राप्त करने के पश्चात् उसी को अप्कसिण में...पूर्ववत्...अवदातकसिण में-यों सब कसिणों में एक ही ध्यान की प्राप्ति 'आलम्बनसमतिक्रमण' कहलाती है। पृथ्वीकसिण में प्रथमध्यान प्राप्त करने के पश्चात् अप्-कसिण में द्वितीय,
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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