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विसुद्धिमग्गो
३०. ये पन अट्ट समापत्तियो निब्बत्तेत्वा अभिजापादकं झानं समापज्जित्वा समापत्तियो वुट्ठाय ‘एको पि हुत्वा बहुधा होती' ति वुत्तनया अभिज्ञायो पन्थेन्ता निब्बत्तेन्ति तेसं सति आयतने अभिज्ञापदट्ठानत्ता अप्पनासमाधिभावना अभिसञानिसंसा होति । तेनाह भगवा"सो यस्स यस्स अभिञासच्छिकरणीयस्स धम्मस्स चित्तं अभिनिन्नामेति अभिज्ञासच्छिकिरियाय, तत्र तत्रेव सक्खिभब्बतं पापुणाति सति सति आयतने" (म० नि० ३/१५९) ति। (३)
३१. ये अपरिहीनज्झाना 'ब्रह्मलोके निब्बत्तिस्सामा' ति ब्रह्मलोकूपपत्तिं पत्थेन्ता अपत्थयमाना वा पि पुथुजना समाधितो न परिहायन्ति, तेसं भवविसेसावहत्ता अप्पनासमाधिभावना भवविसेसानिसंसा होति। तेनाह भगवा-"पठमं झानं परित्तं भावेत्वा कत्थ उपपज्जन्ति ? ब्रह्मपारिसज्जानं देवानं सहब्यतं उपपज्जन्ती" (अभि० २/५०६) ति आदि। (४)
३२. उपचारसमाधिना पि पन कामावचरसुगतिभवविसेसं आवहति येव।
ये पन अरिया अट्ठसमापत्तियो निब्बत्तेत्वा निरोधसमापत्तिं समापजित्वा सत्त दिवसानि अचित्ता हत्वा “दिद्वे व धम्मे निरोधं निब्बानं पत्वा सुखं विहरिस्सामा" ति समाधि भावेन्ति, तेसं अप्पनासमाधिभावना निरोधानिसंसा होति । तेनाह-"सोळसहि जाणचरियाहि नवहि समाधिचरियाहि वसीभावता पा निरोधसमापत्तिया आणं" (खु० नि० ५/४) ति। (५)
है-"भिक्षुओ, समाधि की भावना करो। भिक्षुओ, जो समाहित है वही यथार्थ को जानता है।" (सं० नि० २१७५९)। (२)
३०. अभिज्ञा-माहात्म्य-किन्तु जो आठ समापत्तियों को उत्पन्न करने के बाद अभिज्ञा के कारण स्वरूप ध्यान में लगकर एवं उससे उठकर 'एक होते हुए भी बहत होता है'-इस प्रकार बतलायी गयी अभिज्ञाओं को इच्छानुसार उत्पन्न करते हैं, उनके लिये अर्पणा-समाधि-भावना (अभिज्ञाओं का लाभ देने वाली अर्थात्) अभिज्ञा-माहात्म्य वाली होती है, क्योंकि वह, अभिज्ञाओं की उत्पत्ति का अवसर होने पर, उनका आसन्न कारण होती है। अतः भगवान् ने कहा है-"वह (योगी) अभिज्ञा द्वारा साक्षात्करणीय जिस-जिस धर्म का साक्षात्कार अभिज्ञा द्वारा करना चाहता है, उस उस का, आयतन (=अवसर, अधिकार) होने पर, साक्षात्कार कर लेता है। (म०नि० ३/१५९)। (३)
३१. भवविशेष-माहात्म्य-उन पृथग्जनों को, जिन्होंने चाहे 'ब्रह्मलोक में उत्पन्न होऊँ'यों ब्रह्मलोक में उत्पन्न होने की कामना की हो या नहीं, किन्तु ध्यान से च्युत न हुए हों, विशेष भव को प्राप्त कराने के कारण अर्पणा समाधिभावना भवविशेष-माहात्म्य वाली होती है। अत: भगवान् ने कहा है-"प्रथम ध्यान की सीमित भावना करने के बाद कहाँ उत्पन्न होता है?" (अभि० २/५०६) अदि। (४)
३२. किन्तु उपचार समाधि द्वारा भी कामावचर (लोक में) सुगति के रूप में भवविशेष प्राप्त होता ही है।
निरोधमाहात्म्य-जो आर्य (योगी) आठ समापत्तियों को उत्पन्न करने के बाद निरोधसमापत्ति में समाहित होकर सात दिनों तक चित्तरहित होकर यह सोचकर भावना करता है-'दृष्टधर्म (इसी जन्म) में ही निरोध, निर्वाण को प्राप्त कर सुखपूर्वक विहार करूँगा' उसकी अर्पणा समाधि